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व्यक्तित्व तथा प्रभाव ]
[ १४३ इस तरह जहाँ अमृतचन्द्र उहापोह के द्वारा क्लिष्ट दार्शनिक तथ्यों को स्पष्ट करने की अनोखी सामथ्य रखा है, वहीं वे अपनी तर्कपूर्ण विधेयात्मक व्याख्या द्वारा एक पद का अर्थ करते हुये अनेक अन्यमतों के निराकरण करने में भी कुशल प्रतीत होते हैं। उनकी नैयायिक कुशलता का ज्वलंत उदाहरण "समय" पद को गंभीर व्याख्या है। "समय" पद का अर्थ करते हुए वे लिखते हैं
"योयं नित्यमेव परिणामात्मनि स्वभाव अवतिष्ठमानत्वात् उत्पादब्ययधोव्यै क्यानुभूतिलक्षणया सत्तथानुस्यूतश्चैतन्यस्वरूपत्वाग्नि
१. समयसार माथा २ की प्रात्मरूपाति टीका, पृष्ठ 5-६ (न-यह जीव नामक
पदार्थ सदा ही परिणमनस्वरूप स्वभाव में रहता हुअा होने से उत्पाद व्ययप्रौव्य की एकतारूप अनुभूति लक्षरगयुक्त सत्तासहित है। (इसमं सत्ता को न मानने वाले नास्तिक वादियों का खण्डन हो गया तथा पुरुष (जीव) को
परिणामी मानने वाले सांस्यवादियों का परिणमनस्वभाव' कहने से खण्डन हुआ । नमायिक और वैदोषिकवादी सत्ता को नित्य ही मानते हैं और बौद्ध क्षगिक ही मागते हैं, उनका निराकरण सत्ता को उत्पादव्यम और धौव्य कहने से हुया है।), नोव चैतन्यस्वरूपता से नित्य ज्योतरूप निर्मल स्पष्ट दनज्ञानज्योति स्वरूप है (इस कथन' से चतन्य को ज्ञानाकार रूप न मानने वाले सख्यमत का निराकरण हुना, वह जीव अननधर्मों में रहने वाले एक धमींगने के कारण प्रगट द्रव्यत्व वाला है (इस विशेषण। से वस्तु को धर्मो से रहित माननेवाले बौद्धमतियों का निराकरण हुग्रा), वह कमरूप और अक्रम रूप प्रवर्तमान अनेक 'माय स्वभाव के कारण गुणगायों को धारण करने वाला है (इस विशेषण द्वारा पुरुष को निगुग मानने वारने सांख्यमत वालों का निरसन हो गया), और अपने तथा परद्रयों के प्राकारों को प्रकाशित करने की सामर्थ्य के कारण समस्त रूप को झलकाने वाली एकरूपता को प्राप्त करने वाला है (इस विशेषण से "ज्ञान अपने को ही जानता है पर को नहीं' ऐसा मानने वालों का निराकरण हुमा ।). वह अन्य द्रव्यों के विशिष्ट गुणरेंअवगाहन, गति, स्थिति, वर्तनाहेत्त्व तथा रूपित्व के प्रभाव के कारण और असाधारण चैतन्यरूपता स्वभाव के सद्भाव के कारण प्राकाग, धर्म, अधर्म, काल और पुद्गल-इन पाँच द्रव्यों से भिन्न है । और वह अनन्त अन्य द्रव्यों के साथ अत्यन्त एकाक्षेवावगाहरूप होने पर भी अपने स्वरूप से न छूटने से टकोत्कीर्ण चैतन्यस्वभावरूप है । ऐसा जीव नामक पदार्थ समय है ।