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________________ व्यक्तित्व तथा प्रभाव ] । १३६ उपरोक्त भाष्य में न्यायशैली में कथित पांच प्रकार के बाधितपक्षों में ये तीन प्रकारों का प्रयोग प्राचार्य अमृतचन्द्र ने किया है। जैन न्यायग्रन्थों में अनुसार, अम, लोक संवा स्माला इन पांच बाधित पक्षों का उल्लेख है। यहां आगम, यक्ति (अनमान), स्वानुभब (प्रत्यक्ष ) इन तीनों बाधित पक्षों द्वारा आत्मा संबंधी असल्यमान्यता का निराकरण किया है। न्यायशास्त्रों में अनुमान शैली का प्रयोग अत्यधिक मिलता है। साधन (तर्क, हेतु अथवा यक्ति) से साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं । अनुमान के ५ अंग है प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन । इनमें पक्ष तथा साध्य के कहने को प्रतिज्ञा कहते हैं। साधन (तर्क) रूप वचन को हेतु कहते हैं । व्याप्ति पूर्वक दृष्टांत के बाहने को उदाहरण कहते हैं। पक्ष और साधन में दुष्टांत की सदशता दिखाने को उपनय कहते हैं तथा निष्कर्ष निकालकर प्रतिज्ञा के दोहराने को निगमन कहते हैं। आचार्य अमृतचन्द्र ने अपनी टीकाओं में सर्वत्र उक्त अनुमान शैली के यथावस्यक कहीं सभी, कहीं, दो कहीं ३ तथा कहीं चार अंगों का प्रयोग किया है। उदाहरण के लिए उनकी अनमान शैली का प्रमाण प्रस्तुत है। इसका प्रयोग वे 'द्रव्यों से द्रव्यान्तर (अन्यद्रव्य) की उत्पसि तथा द्रव्य सत्ता के अन्तरत्व (अन्य पदार्थपने ) के होने का खण्डन करते हुए लिखते हैं जीव भेदज्ञानियों द्वारा उपलभ्यमान है। ६ । श्रीखण्ड की भांति उभयात्मक मिश्रित आत्मा और कर्म गिलकर भी जीव नहीं है, क्योंकि गंपूर्णतया कर्मों से भिन्न चैतन्य स्वभाबीजीव भेवनानियों द्वारा उपलभ्यमान है ! ७ । यर्थ निया में समर्थ कम का संयोग भी जीव नहीं है, क्योंकि पाठ लकड़यों के संयोग से भिन्न पलंग पर सोने वाले पुरुष की भांति, वम संयोग रो भिन्न चतन्यस्वभावी जीव भेदज्ञानियों के द्वारा स्वयं उपलभ्यमान है। १. बाधित: प्रत्यशानुभानागमलोयः स्वपचनः । प्रमेयरत्नमाला। पष्टस मुद्देश सूत्र १५ की टोका तथा जैन सिद्धांत प्रवेशिका - प्रश्नोत्तर क्रमांक ५५. ५६, ५७, १८ (पृष्ठ १४ व १५) २. जैन सिद्धांत प्रवेशिका कर्माना ४१, ५६, ६०,६१, ६२, ६७, तथा ६८ ३. प्रवचनसार गाथा ६८ वी टीका - (मर्थ - वास्तव में द्रव्यों से द्रव्यांतरों (दूसरे द्रव्य) की उत्पत्ति नहीं होती । (प्रतिज्ञावाक्य) क्योंकि सवंगव्य स्वभाव
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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