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पृष्ठ-भूमि
अखिल मानव जगत निरन्तर दो विभागों में विभक्त रहा है, प्रथम आध्यात्मिक और द्वितीय भौतिक । चिरकाल से भारत आध्यात्मिकता के लिए और पाश्चात्य देश भौतिकता के लिए विश्रुत रह हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि सभी भारतवासी आध्यात्मिक हैं। यहां भी शुद्ध भौतिक बादी, नास्तिक एवं अध्यात्म से अछूते या दूर रहते वाले व्यक्ति भी सदा होते रहे हैं और आज भी प्रचारमात्रा में हैं। 'खामो, पियो, मौज करो" के सिद्धान्त को मानकर मात्र इंद्रिय-विषयों में मस्त रहने वाले तथा पात्मा, परमात्मा और अतीन्द्रिय-यात्मिक आनंद में अविश्वास करने वाले भौतिकवादी हैं । शुभाशुभ कर्मों के फल स्वर्ग-नरक आदि हैं एवं निष्कर्म अात्मानुभुति की अवस्था का फल मुक्ति है । आत्मा की सत्ता परलोक में भी रहती है अथवा अात्मा का एक पर्याय या शरीर छोड़कर दूसरो पर्याय या शरीर-प्राप्ति रूप पुर्नजन्म होता है, इत्यादि तथ्यों को न मानने वाले नास्तिक हैं। प्रसिद्ध वैयाकरण पाणिनी ने लिखा है "अस्ति नास्ति दिष्टं मतिः'। उक्त सत्र की टीका में यास्तिक व नास्तिक के स्वरूप का स्पष्टीकरण करते हुए लिखा है:-''अस्ति परलोकः इत्येवं मतिर्यस्य सः प्रास्तिकः, नास्तीति मतिर्यस्य सः नास्तिकः ' अर्थात् प्रात्मा का परलोक में अस्तित्व रहता है - ऐसी जिनकी मान्यता है, बे प्रास्तिक हैं तथा आत्मा का प लोक में अस्तित्व नहीं होता - ऐसी जिनकी मान्यता है वे नास्तिक हैं। उक्त ग्राघार पर ही भारत को अध्यात्मवादो तथा पाश्चात्य देशों को भौतिकवादी माना जाता है ।
___ समस्त भारतीय दर्शनों को धमण और श्रमणेतर, इन दो विभागों में समाहित किया जा सकता है। वाचस्पति गैरोला का भी अभिमत है
१. सिद्धान्त कौमुदी (बालमनोरमा टोका) ४/४/६० पृ. ८००
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