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________________ १३० ] [ आचार्य अमृतचन्द्र व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व प्रतिपादितम् | शास्त्रतात्पयं त्विदं प्रतिपाद्यते । प्रत्येक गाथा की टीका श्रारंभ करते हुये "अ" पद प्रयोग द्वारा सूत्रालय की सूचना ( उत्था निका में या प्रारंभिक पंक्ति में ही ) करते हैं यथा--" अत्र पंचास्तिकायानां कालस्य च द्रव्यत्वमुक्तम् ।"* ६. प्रथम पदों आदि का प्रयोग — उनकी टीकाओं में प्रायः सभी प्रकार के अन्य पदों का विभिन्न उपसर्गों का अधिकांश प्रत्ययों, धातुरूपों तथा अप्रयुक्त क्लिष्ट शब्दों, विभिन्न अलंकारों, रसों, गुणों और छंदों का प्रयोग हुआ है । १०. बाणभट्ट को गद्य शैलियों का प्रयोग - अपने पूर्ववर्ती सुप्रसिद्ध प्रोढ़तम गद्यलेखक बाणभट्ट के ग्रंथों में प्रयुक्त गद्यशैलियों को प्राचार्य अमृतचद्र ने अपने असाधारण व्यक्तित्व द्वारा दार्शनिक सैद्धांतिक गुत्थियां को सुलझाते हुये बड़ी कुशलता के साथ प्रस्तुत किया है। यहां तुलनात्मक दृष्टि से कुछ गद्यशैलियों के उदाहरण दिये जाते हैं जिनसे अमृतचंद्र की प्रौढ़ता, क्षमता तथा व्याख्यान कला का भलीभांति परिचय होता है और वे बाणभट्ट की भांति प्रौढ़तम व्याख्याता प्रमाणित होते हैं । कवाचित पद का बहुशः प्रयोग - " स कदाचिदनवरत दोलायमान रत्नबलयो घरिकास्कालन प्रकम्पझणझणायमान मणिकर्णपूरः स्वयंमारव्यदंगवाद्यः संगोतक प्रसंगन, कदाचिदविरल विमुक्तशरासर शुन्यीकृत जननो मृगयाव्यापरेण कदाचिदाबद्ध विदग्ध मण्डलः काव्यप्रबंधरचनेन, कदाचिच्छास्त्रालीपेन, कदाचिदाख्यानकाख्यायिकेतिहासपुराणाकर्णनेन कदाचिदालेख्य विनोदन, कदाचिद्वीणया कदाचिद्दर्शनागत मुनिजनचरणशुश्रूषया, कदाचिदक्ष रच्युतकमात्राच्युत क बिन्दुमतीगढ़चतुर्थपादप्रहेलिका प्रदानादिभिर्थनितासंभोग सुख पराङमुख दिवसमनेषीत् । "३ " सुहृत्परिवृतो , दर्शनाचरणाय कदाचित् प्रशाम्यतः कदाचित् संविजमानः, कदाचिदनुकम्पमानाः कदाचिदास्तिक्य मुद्वहन्तः ** 7 "इव" पद प्रयोग द्वारा उत्प्रेक्षा अलंकार "उपशांतवचसि शुकनासे चन्द्रापीडः ताभिरमलाभिः उपदेशवाग्भिः प्रक्षालित इव, उन्मीलित १. पंचास्तिकाय गाथ। १७२ की टीका २. पंचास्तिकाय गाथा ६ की टीका ३. कादम्बरी, पूर्वभाग, पृष्ठ १३ ४. पंचास्तिकाय गाथा १७२ की टीका 1
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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