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________________ व्यक्तित्व तथा प्रभाव । [ १२७ वनहस्तीस्वस्व बन्धाय उपसर्पन्ती चढुलमुखीं मनोरमाममनोरमां या करेणु कुट्टनी तत्त्वत; कुत्सितशीला विज्ञायतया सह रागसं सगी प्रतिषेधयति, तथा किलात्मा रागो ज्ञानी स्वस्य बन्धाय उपसर्पन्ती मनोरमाममनोरमा वा सर्वमपि कर्मप्रकृति तत्त्वत: कृत्सितशीलां विशाय तया सह रागसंसर्गो प्रतिषेधति ।' एक स्थल पर ज्ञान की सामर्थ्य के कारण ज्ञानी कर्म बन्ध को प्रप्त नहीं होता - इसका स्पष्टोकरण वे एक अत्यंत आकर्षक दृष्टांत देकर कन्ते हैं - यथा कश्चिद्विषवैद्यः परेषां मरणकारण विषमुपमुजानोऽपि अमोधविद्यासामर्थेन निरुद्धतच्छत्ति त्वान्न म्रियते, तथा अज्ञानिनां रागदिभावसभावेन बन्धका रणं पुद्गलकोदयमुपभुजानोऽपि अमोघज्ञानसामात्, रागादिभावानामभावे सति निरुद्धतच्छक्तित्वान्न बध्यते ज्ञानी ।"२ आगे वैराग्य शक्ति को दिखाते हुए लिखा है - "यथाकश्चित्पुरुषो मरेयं प्रति प्रवृत्ततीनारतिभावः सन् मैरेयं पिबपि तीव्रारतिभावसामग्नि माद्यति, तथा रागादिभावानामभावेन सर्वद्रव्योपभोगं प्रति प्रवृत्ततीविरागभावः सन् विषयानुपभुजानोऽपि तीवविरागभावसामर्थ्यान्न बध्यते ज्ञानी । इस प्रकार यद्यपि उपरोक्त दुष्टांत १. समयसार गाथा १४६ की टीका (अर्थ-जसे कोई जंगल का कुशल हाथी अपने बन्धन के लिए निकट पाती हुए सुन्दर मुखवाली मनोरम या अमनोरम हथिनीरूप कुटिनी को परमार्थतः बूरी जानकर उसके साथ राग मा संसर्ग नहीं करता, इसी प्रकार यात्मा अरागीज्ञानी होता हया अपने बाध के लिए समीप आने वाली मनोरम या अमनोरम (शुभ या अशुभ) सभी कर्मप्रकृतियों को परमार्थतः बुरी जानकर उनके साथ राग तथा संसर्ग नहीं करता ।) २. जिस प्रकार कोई विषवैद्य, दुसरों के मारण के कारणभूत विष को भोगता हुधा भी, अमोघ (रामवाण) विद्या की सामर्थ्य से विषाक के निरुद्ध होने से, नहीं मरता, इसी प्रकार प्रशानियों को, रागादिभावों का सद्भाव होने से बनने के कारण पुद्गलकर्म के उदय की भोगता हुमा भी, शानिअमोघ ज्ञान को सामर्थ्य द्वारा रागादिभाबों का प्रभाव होने से कर्मोदय की माकि रुक जाने से; बन्ध को प्राप्त नहीं होता । (समवसार गाथा १६५ की टीका) ३. जैसे कोई पुरुष, मदिरा के प्रति तीन प्रतिभाव से प्रवर्तता हुआ, मदिरा को पीने पर भी. तीन भरतिभाव की सामर्थ्य के कारण मतवाला नहीं होता, उसी प्रकार ज्ञानी भी, रागादिभावों के प्रभाव से सर्व द्रश्यों के उपयोग के प्रति तीव वैराग्य भाव से प्रवर्तता हुअा, विषयों को मोगता हुमा भी तीन बैराग्य भाव की मामध्यं के कारण कर्मवध को प्राप्त नहीं होना । (समयसार गाथा १६६ टीका)
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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