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________________ व्यक्तित्व तथा प्रभाव । [ १२३ सह संबध्यन्ते, तत आत्मनो द्रव्यालम्बनज्ञानेन द्रव्याणां तू ज्ञानमालम्व्य शंयकारेण परणतिरबाधिता प्रतपति ।। ३६ ।।' इस प्रकार उपर्यस्त उदाहरणों से अमृतचन्द्र का वाकर का रूप भली भांतिप्रगट हो जाता है। ४. एक ही पद्य के अनेक अर्थ - अमृतचन्द्र एक ही पद के प्रकरणबशात अनेक अर्थ करके संबंधित पद में निहित अभिप्राय को बड़ी कुशलता के साथ प्रदर्शित करत है । प्रवचनसार में ज्ञयतत्व प्रज्ञापन में ''अलिंगग्रहण' पद के २० अर्थ किये हैं। इसी पद का पर्थ समयसार के जीव अजीव अधिकार में ७ भेद तथा ४२ प्रभेदों द्वारा किया है । प्रचास्तिकाय के मोक्षमार्ग-प्रयंचवर्णन प्रकरण में अलिंगग्रहण का अर्थ १. प्रवचनसार-ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन - गाथा ३६ की तत्त्वप्रदीपिका टीना १-अर्थात (अपने में क्रिया के होने का विरोध है, इसलिए ग्रात्मा के स्वज्ञायत्रता कैसे त्ति होती है ? (उत्तर) कौनसी किया है और किस प्रकार का विरोध है ? जो यहां (प्रश्न ये) विरोध क्रिया नहीं गई है वह या तो उत्पत्तिरूप होगी या ज्ञाप्तिरूप होगी । प्रथम, उत्पत्तिरूप क्रिया "कोई स्वयं अपने में से उत्पन्न नहीं हो सकती" इस पागम कथन से विरुद्ध ही है, परन्तु ज्ञप्तिरूप दिया में विरोध नहीं पाता क्योंकि वह प्रकाशन क्रिया की भांति उत्पत्ति क्रिया से विरुद्ध प्रचार नी होती है। जैसे जो प्रकाश्यभूत पर को प्रकाशित करता है ऐसे प्रकाशक दीपक को स्वप्रकाश्य को प्रकाशित करने के संबंध में अन्य प्रकाशक की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि उसके स्वयत्र प्रकाशन किया की प्राप्ति है, इसी प्रकार जो ज्ञेयभून पर को जानता है ऐसे ज्ञायन्झ यात्मा को स्वज्ञ य के जानने के सम्बन्ध में अन्य ज्ञायक को मावश्यकता नहीं होती, क्योंकि स्वयमेव त्रिया की प्राप्ति है। (प्रश्न) आत्मा को न्यों की जागरूपत्ता और द्रव्यों को प्रात्मा को ज्ञ यरूपता किस प्रकार घटित है? उत्तर - वे परिणाम काले होने से (घटित है) । ग्रात्मा और द्रव्य परिणामयुक्त हैं, इसलिए प्रात्मा के, द्रव्य जिसका प्रालंबन है ऐस ज्ञानाप म और व्यों के, ज्ञान का पालंबन लेकर ज्ञ याकार रूप से परिणत अनामित रूप से उपती है - प्रतापवन्त दरांती है। २. प्रवचनसार नाथा १७२ की तत्वदीपिका टीका। ३, समयसार गाथा ४६ को प्रात्मख्याति टीका ।
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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