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तथा प्रभाव ]
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का लक्ष्य स्पष्ट करते हुए कहा है- "परमानन्दरूप अमृतरस के भव्यजीवों के हित के लिए, वस्तुतत्त्व को स्पष्ट दानेवाली सनसार की यह टीका रखी जा रही है। समय का उद्देश्य महिमा इस प्रकार है कि यह समयव्याख्या टीका सम्यग्ज्ञान रूपी ज्योति को जन्म देने वाली (जनवी ) है दोनों (निश्चयबिहार ) नयों के आश्रय से रची गई है, इसे संक्षेप में कहा जाता है । " सार टोका के आरम्भ में भी यह लक्ष्य स्पष्ट घोषित है कि अब शाभिलाषी जीवों ( मुमुक्षुओं) के कल्याण के लिए, मोक्षमार्ग को काशित करने हेतु दीपक के समान यह तत्वार्थसार नामक ग्रन्थ अत्यंत प्रिंट रूप से कहा जाता है । इस तरह विभिन्न ग्रन्थों के मर्म का रहस्योप्रिंटन करने और अपने घोषित उद्देश्यों को पाने में ये सफल हुए हैं । सिकी उपलब्ध टीकाकृतियां उनकी सफलता की द्योतक हैं ।
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३. संस्कृत गद्य तथा पद्य साहित्य की विभिन्न शैलियों का प्रयोगकार के रूप में उन्होंने अपने भाष्यों में संस्कृतगद्य तथा पद्य साहित्य की विभिन्न शैलियों का सफल प्रयोग किया है। कुछ नवीन इलियों के के पुरस्कर्ता भी हैं। उनकी टीकाओं में कुछ उपलब्ध प्रमुख शियों के नाम इस प्रकार हैं- व्युत्पत्ति-अर्थशैली, नयशैली, हेतुपुरस्पर ती दृष्टांत व दाष्टीत शैलो, "दृष्टांत में तर्क, तर्क में प्रश्न, प्रश्न में समास्वान व्याख्या शैली, प्रश्न शैली, लर्कसापेक्ष शैली, अनुमान पंचावयवशैली, "शैली", न्याय शैली, अनेकरूप कथन शैली, प्रत्यभिज्ञान शैली, सूत्ररूप कथन शैली, समास विग्रह परक शैली, समास बहुलदीर्घ वाक्यावलि युक्त शैली तथा तुलनात्मक कथन शेली श्रादि। इन शैलियों का सप्रमाण आक्लिन हम प्रागे यथासमय सविस्तार करेंगे, फिर भी उदाहरण के रूप कु शैलियों का प्रयोग इस प्रकार है
में
व्युत्पत्ति या निरुक्तिपरक शैली -झाचार्य अमृतचन्द्र ने जहां जहां मूल शब्द के रहस्य को करना चाहा, वहीं उन शैली का प्रयोग समयसार की टोका प्रारम्भ करते समय "समय" शब्द की गम्भीरता को प्रकट करते हुए लिखा है "ममयतेएकत्वेन युगपज्जा
किया है । यथा
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प्रदीपिका, पद्म श्रम ३
समयध्याख्या, पद्य क्रमांक ३ तत्वार्थसार, पद्य नं. २