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________________ शक्तित्व का भाव । । १०७ इस चमत्कारी रहस्यमयी 'पद्य का अर्थ इस प्रकार है कि हे अजितनाथ तीर्थङ्कर श्राप ज्ञावक हो, ज्ञान हो, ज्ञेय हो, नअन्त चतुष्टय रूप लक्ष्मी के ईश्वर हो और ज्ञान के फल हो, इस तरह आप सब कुछ हो । . आपके ज्ञान का कुछ भी नहीं है और आप अन्य किसी 'दार्थ रूप नहीं हैं, तो भी आप उत्कृष्ट रूप से चैतन्य चमत्कार रूप हो। इसी तरह चतुर्थ तीर्थकर लभिनन्दननाथ की स्तुति में रनित पद्य गम्भीर, आकर्षक, .. अनुप्रास अलंकार से अलंकृत तथा उच्चवित्बशक्ति का जाज्वल्यमान . उदाहरण है, यथा - परभाति भाति नदिहाथ च न भानि भाति, नाभानि भाति स च भाति न यो नभाति । भा भाति भात्यनि च भाति न भात्य भाति, सा चाभिनन्दन विभान्त्यभिनन्दनित्वाम् ।।४।। अर्थात, हे अभिनन्दन नाथ ! जिस देदीप्यमान ज्ञान से यह आत्मा सुशोभित है, बह जान अन्य पदार्थों में सुशोभित नहीं होता क्योंकि वे चेतन नहीं है। वह ज्ञान जो इस निजात्मा में महान वैभव के साथ देदीप्यमान है, चेतनता रहित पदाथों में प्रदोत नहीं होता। विशिष्ट रूप से शोभायमान बह ज्ञानज्योति (सर्वज्ञता जिसमें जाता जय तथा झान गभित हैं) आपका अभिनन्दन करती है ।। इसी तरह दसवें तीर्थङ्कर शीतलनाथ की स्तुति में रचित पद्य में भी अनुप्रास के साथ विरोधाभास अलंकार भो प्रस्फुटित हुप्रा है। पद्य में आमत भाव इस प्रकार है – हे शीतलनाथ जिनेन्द्र, आप (कोषादि सर्वविकारों से) शून्य होने पर भी, (ज्ञानादि अनन्त गुणों से ) अतिशय पूर्ण हैं । (स्वकीय गुण पर्यायों से) परिपूर्ण होकर भी (अन्य द्रव्य के गुणपर्यायों से) शून्य हैं। अन्य द्रव्यों में शुन्यविभव होकर भी जयरूपता को प्राप्त हुए अनेक द्रव्यों से पूर्ण हैं। अनेक अतिशयों (महिमाओं) से परिपूर्ण होकर भी सदा एक ही हैं। इस तरह हे शीतलनाथ आपके चरित्र को जानने के लिए कौन समर्थ है ? अर्थात् कोई नहीं । मुल पद्य इस प्रकार है १. लघतत्त्वस्फोट-अध्याय १ पद्य नं. ४
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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