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{ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
का विषय शुष्क प्रतीत होता है। उस पर सरस कविता करना कठिन है। आचार्य अमृतचन्द्र ने ऐसे कठिन कार्य को भी अपनी अलौकिक आध्यात्मिक प्रतिभा एवं बावित्वशक्ति से सुकर एवं सुगम कर दिखाया है। उनकी लेखनी में बल है, लवितानों में पाया है. सादों में रहा है
और सिद्धांत प्रतिपादन में अस्खलन है। वे उच्च कोटि के कवि हैं।' यपि दर्शन और अध्यात्म के कई अन्य दिग्गज आचार्य भी हुए हैं परन्तु अध्यात्मरस की सरिता में अपने को निमज्जित कर देने वाले आचार्य अमृतचन्द्र ही हुए हैं। उन्होंने अध्यात्मसागर का अवगाहन करके अत्र्यास्मतरंगिणी प्रवाहित की है।
उनकी आत्मख्याति टीका के पाठकों को अमृतचन्द्र की अध्यात्म रसिकता, अनुभवप्रखरता, प्रकान्हविद्धता, वस्तुस्वरूप की न्याय तर्क तथा दृष्टांत से सिद्ध करने की असाधारण शक्ति और उनकी उत्तम काव्यशक्ति का पूरा ज्ञान हो जाता है। संक्षेप में गम्भीर रहस्यों को भर देने की उनकी अनोखी सामर्थ्य विद्वानों को आश्यान्वित करती है। प्रत्येक बालश में अनुभव रस की लहरी तथा अध्यात्म की मस्ती पाई जाती है। तत्त्वज्ञान और अध्यात्म रस से रारावार उनके कलश आध्यास्मरसिकों को अपूर्व आनन्द प्रदान करते हैं। उसके पठन एवं रसास्वादन' से है स्तंत्री के तार मानों झनझना उठते हैं। उक्त झनझाहद एवं आनंदानुभव पैदा कराने वाले कुछे। कलश यहाँ उदाहरण के रूप में प्रस्तुत हैं। प्रात्मस्वभाव का दिग्दर्शन कराते हुए वे लिखते हैं :
आत्मस्वभाव परभावभिन्नमापूर्णमाद्यन्त विमुक्तमेकम् । विलीन-संकल्प-विकल्पजालं प्रकाशयन् शुद्धनयोभ्युदेति ।।
इसी प्रकार नयों के विकल्परूप पक्षपात को छोड़कर, जो स्वरूप में लीन होते हैं उन्हें साक्षात् अध्यात्मरूप अमृत पीने को मिनता है। उक्त अमत से भरा उपेन्द्रवज्रा छंद रूप कलश इस प्रकार है:
य एव मुक्त्वा नयपक्षपातं, स्वरूप गुप्ता निवसन्ति नित्यम् । विकल्पजाल च्युत शांत चित्तास्त एवं साक्षादमतं पिबन्ति ॥
१. प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनका समयमार, पृष्ठ ३२५-२६ २, अध्यात्म अमृतकलश, प्रामथन, पृष्ठ ७ ३. समयसार, प्रस्तावना, पृष्ठ ६, मानगढ़ तृतीयायत्ति १६६४ ४. समयसार कलश, क्रमांक १० ५. समयसार कलश, क्रमांक ६६
माना १०