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________________ व्यक्तिक तथा प्रभाव ] [ १०१ की भांति महत्वपूर्ण माना है।' समयसार को भूलगाथायें तथा आत्मलाति संस्कृत टीकाको पढ़ने पर भी समयसार कलशों को पढ़े बिमा पूर्णरूपेण प्रात्मीय, अनुगम आनन्द वा आस्वादन नहीं हो पाता ।' उन लशों की रचना इतनी सरस है कि सहृदय पाठक को, तगत भावों को हृदयंगम किये बिना भी उनको पठन मात्र में अब आनन्द मिलता है। सचमुच में अमृतचन्द्र आध्यात्मिक कवियों के मुकूटर्माण हैं। उनके पद्य उसने दूरह नहीं है, जितना उनका गद्य । किन्तु दोनों प्रकारों में एक प्रकार का सौष्टव पाया जाता है। उनके द्य सौष्ठव का नमूना इस प्रकार है : भयनय विरोध ध्वंसिनी स्यात्पदाङ के, जिनबसि रमतेयि स्वयं बात मोहाः। सपदि समयसारं ते परं ज्योतिरुच्चरनवमनय पक्षाक्षण्णमीक्षत एव ।।४॥ आचार्य अमृत चन्द्र का अध्यात्म विषयक पाण्डित्य जितना गंभीर और तलस्पर्शी है, उसको व्यक्त करने वाली भाषा भी तदनुरूप, स्वामाविक तथा धारा प्रवाह में प्रवाहित होती है । समयसार कलश अतिसुन्दर और अध्यात्म रस से भरे हुए हैं। उन कलशों में अनुभव रस का भण्डार भरा है । जिसे भी उस अनुभव रस का रमास्वादन हो जाता है, वह संसाररूप समुद्र से पार हो जाता है । लौकिक जनों को अध्यात्म म म. (अ) समयनार नाटक, पं. बनारसीदास, स्याद्वाद द्वारा पद्य नं. १,२ अद्भुतग्रन्थ अध्यातम वानी, समझ कोउ बिरला ज्ञानी । यामै, स्माद्वाद अधिकारा, ताकी जो की विस्तारा ।। तो गरंथ अति शोभावाने, वह मन्दिर रह गलश बहाव । तब चित्त अमृत वाचन गढ़ि खोले, अमनचन्द्र कारज बोले ।। . (स) परमाध्यात्मतरंगिणों की प्रस्तावना, पं. गजाधरलाल कृत, पृष्ट ? (स) आत्मधर्म, अप्रेल, ६६ अंक १२, पृष्ठ ७३१, प्रवचन, मन कानजी स्वामी परमाध्यात्मरंगिणी, प्रस्तावना, पष्ट १ जैन साहित्य का इतिहास, माग २, पृष्ठ १७३, १७४ . समयसार कलश, पद्य क्रमांक ४ जैन साहित्य का इतिहाग, भाग २. पृष्ट १७३ समयसार नाटक, पं. बनारसीदास, ईडर के भण्डार के प्रति का अंतिग अंश । "समयसार नाटक अक्रथ, अनुभव रस भण्डार । पाको रस जी जानहीं सो पावें भवपार ||"
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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