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________________ १०० ] [ आचार्य अभूतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कतख सविस्तार अनुशीलन आगे किया गया है। उपर्युक्त विशेषताओं के कारण ही प्राचार्य अमृतचन्द्र एक अंड एम प्रोलमधलेखक सिद्ध होते हैं। प्रमतचन्द्र पचकाव्यकार - आचार्य अमृतचन्द्र जितने प्रौढ एवं सिद्धहस्त गद्यलेखक है, उससे भी कहीं अधिक प्रौढ़ और कुशल काव्यकार भी हैं। उनमें पद्यकाव्य प्रतिभा नैसगिक तथा असाधारण थो। वे असाधारण कवि ही नहीं, अपितु कवियों में श्रेष्ठ थे। इसीलिए "कवीन्द्र" पद से विभूषित थे। उन्होंने स्वयं भी एक स्थल पर अपने नाम के समक्ष कवीन्द्र पद का प्रयोग किया है।' डॉ. ए. एन. उपाध्ये ने उन्हें गच लेखक की अपेक्षा पद्य कार के रूप में विशेष सक्षम माना है । "पद्य" शब्द का अर्थ हैं "पस्तू योग्य पद्यम्" अर्थात जो गतिशील' हो वह पद्य कहलाता है।' गतिशीलता एवं भावप्रवाहपने के कारण ही गद्य को अपेक्षा पद्यरचनायें अधिक प्रभावशाली एवं रसमया सिद्ध हुई हैं। सहदयजनों के हृदयों को उद्वेलित करने तथा प्रचुरता से रसास्वाद कराने में पद्यकाव्य विशेष सफल सिद्ध हुआ है। आचार्य अमृतचन्द्र रससिद्ध कवीन्द्र थे । उनकी कवित्वशक्ति तथा विलक्षण प्रतिभा उनके द्वारा रचित पद्य साहित्य में विशेष रूप से प्रस्फुटित है। उनकी अद्यावधि उपलब्ध पद्य रचनाओं में पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, समयसार कलश, तत्त्वार्थसार तथा लघुतत्त्वस्फोट प्रसिद्ध हैं। ये समस्त कृतियाँ आध्यात्मिक महाकवि, रससिद्ध कवीन्द्र, आचार्य अमृत चन्द्र के असाधारण व्यक्तित्व से अनुप्राणित हैं। "समयसार कलश" अमृतचन्द्र के अध्यात्मामृत का सागर है। मधुर पद्यों में अध्यात्म विद्या के सार को समाहित किये हुए है । प्रत्येक कलश में जन अध्यात्म व जैनागम का रहस्य और कुन्दकुन्दाचार्य के सूत्रों का भाव भरा हुआ है। वे कुन्दकुन्दाचार्य के ग्रन्थों की रहस्यज्ञता के ज्वलंत उदाहरण हैं। विद्वानों ने इन पद्यमय कलशों को कुन्दकुन्द द्वारा निर्मित जिनदर्शन तथा अध्यात्मरूप मन्दिर के स्वर्ण कलश १. लघुतत्त्वस्फोट ६२६ वा पद्य, प्रास्वादयत्वमृतचन्द्र कवीन्द्र एष ........" २. प्रवचनसार, प्रस्तावना अंग्रेजी, पृष्ठ १४-६५, IIf Edn. १९६४--- Amrtachandra is more a poet than a prosswriter, to this eyet a for Yer Ses in his commentary on Pravacinagara bear witbacka." ३. महाकवि हरिचन्द एक मनुशीलन, पृष्ठ ३ J
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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