SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्तित्व तथा प्रभाव ] [ ६७ f इसका थवान कराने हेतु अमृतचन्द्र ने जो टीका लिखी है, बहू उनके प्रीतम, भावप्रवाही तथा विद्वतापूर्ण गद्य का नमूना प्रस्तुत करना है यथा अथ केवलस्यापि परिणामद्वारेण सदस्य सभाका निक सुखत्वं नास्तीति प्रत्याचष्टे अत्र की हि नाम खेदः कश्च परिणामः कश्च केवलियो [तिरेकः, यतः केवलस्यैकांतिक सुखत्वं न स्यात् ? खेदस्यायतनानि चातिकर्माणि ननाम केवलपरिणाम मात्रम् । घातिकमणि हि महामोहोत्पादकत्वादुन्मत्तक वदत स्मितनुद्धिमधाय परिधम प्रत्यात्मानं यतः परिणामन्यति, ततस्तानि तस्य प्रत्यर्थ परिणमत्र श्राम्यतः खेदनिदानां प्रतिपद्यन्ते । तदभावात्कुतो हि नाम केवले खेदस्वभेवः । यतच त्रिसमय निकल पदार्थ परिच्छद्याकारवैश्वरूप्य प्रकाशनास्पदीभूतं चित्रभित्ति स्थानीयमनंतस्वरूपं स्वयमेव परिणमत्केवलमेव परिणामः ततः कुतोऽन्यः परिणामो यद्द्द्वारंण खेदस्यात्मलाभः । यतश्च समस्त स्वभावप्रतिघातः भावात्समुल्लसिननिर कुशनन्तशक्तितया सकल कालिक लोकालोकाकारमभिव्याप्य कूटस्थत्वेनात्यन्त निःप्रकम्पं व्यवस्थितत्वाद नाकुलता सौख्यलक्षणभूतामात्मनोऽव्यक्तिरिक्तां विभ्राणं केवलमेव सौख्यम् : ततः कुतः केवल सुखयोर्येतरेकः । अतः सर्वथा केवलं सुखमैका - तिनुमदनीयम् २१ आगे केवलियों में पारमार्थिक सुख होता है, इसकी J 1 > . १. " श्रत्र केवलज्ञान को भी परिणाम के द्वारा खेद की संभावना के कारण ऐकान्तिक सुख नहीं है" ऐसी मान्यता का खण्डन करते हैं यहाँ (केवलज्ञान के संबंध में) खेद क्या हैं? परिणाम क्या है? केवलज्ञान और गुख का व्यतिरेक क्या है ? जिससे केवलज्ञान को एकांततः सुखत्व न हो ? ( १ ) खेद के आयतन (स्थान) घातक हैं। केवल परिणाम मात्र नहीं । घाति महामोह के उत्पादक होने से धतूरे की भांति अतत् में तबुद्धि धारण करवाकर आत्मा को पदार्थ के प्रति परिगमन कराते हैं, इसलिए वे घातिकर्म प्रत्येक पदार्थ के प्रति परिमित हो होकर थकने वाले ग्रात्मा के लिये खेद के कारण होते है । उनका ( वातिक्रमों का ) प्रभाव होने से केवलज्ञान में खेद कहाँ से प्रगट हो सकता है ? (२) और तीन गलरूप तीन भेद वाले रामरत पदार्थों की ऩयाकार रूप विविधता को प्रकाशित करने का स्थानरूप केवलज्ञान चित्रित दीवार की भांति स्वयं ही अनंतस्वरूप स्वयमेव परिमित होता है इसलिए केवलज्ञान ही परिणाम है | तथा अन्य परिणाम कहाँ है कि जिनसे खेद की उत्पत्ति हो ? (३) और केवलज्ञान समस्त स्वभाव प्रतिघात के अभाव के कारण निरंकुश अनंतशक्ति के उल्लसित होने से समस्त वैकालिक लोकालोक के आकार व्याप्त होकर कूटस्थतथा अत्यंत निष्कम्प है, इसलिये ग्रात्मा से अभिन्न सुख लक्षएभूल अनाकुलता को धारण करता हुआ केवलज्ञान ही मुख है, इसलिये केवल ज्ञान और सुख का व्यतिरेक कहाँ है ? अर्थात् नहीं है ।" प्रवचनसार गाथा ६० की टीका, पृष्ठ ८६-८७
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy