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________________ व्यक्तित्व तथा प्रभाव ] | ६३ लघुवाक्यावलियुक्त तथा चमत्कारी गद्य का नमुना अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों का उद्घाटन करने हेतु उनके गद्य साहित्य में सर्वत्र दुष्टांतों का सहारा लिया गया है, उससे गद्य की सरलता तथा सुगमता और भी बढ़ जाती है। ऐसे दृष्टांतयुक्त गद्य का नमूना यहां दिया जाता है। इसमें धनार्थी का दृष्टांत देकर मोक्षार्थी को किस प्रकार ज्ञान, श्रद्धान तथा आचरण करना चाहिए यह बताया है। यथा - "यथा हि कश्चित्पुरुषोऽर्थार्थी प्रयत्नेन प्रथममेव राजानं जानीते, ततस्तमेव श्रद्धते ततस्तमेवानुचरति । तथात्मना मोक्षार्थिना प्रथममेवात्मा ज्ञातव्यः ततः स एव श्रद्धातच्यः, ततः स एवानुचरितव्यश्च साध्यसिद्धेस्तथान्यथोपपत्त्यनुपपत्तिम्याम् "" ? आचार्य अमृतचन्द्र के गद्य में सरलता, स्पष्टता के साथ साथ प्रौढ़ता के भी दर्शन होते हैं। एक ही पद अथवा प्रकरण का स्पष्टीकरण वे तब तक करते जाते हैं, जब तक वह भली प्रकार से पाठक के समझ में ना जावे | ऐसे स्पष्टीकरणों में भाषा का सहज प्रवाह एवं तारतम्म भी बना रहता है । उदाहरण के लिए एक स्थल पर "चारित्र" के स्वरूप का स्पष्टीकरण करते हुए वे लिखते हैं: - "स्वरूपे चरणं चारित्रं । स्वसमयप्रवृत्तिरित्यर्थः । तदेववस्तुस्वभावत्वाद्धर्मः । शुद्ध चैतन्य प्रकाशनमित्यर्थः । तदेव च यथावस्थितात्मगुणत्वात्साम्यम् । साम्यं तु दर्शनचारित्रमोहनीयोदयापादित समस्त मोक्षोभाभावादत्यन्त निर्विकारो जीवस्य परिणामः | २ 1 १. " जैसे निश्चय से कोई धन का अर्थी पुरुष बहुत उच्चम से पहले तो राजा को जाने ( कि यह राजा है), फिर उसी का श्रद्धान करे ( कि यह श्रवश्य राजा ही है, इसकी सेवा करने से अवश्य धन की प्राप्ति होगी और फिर उसी का अनुचरण करे ( सेवा करे, आज्ञा में रहे, उसे प्रसन्न करे ), इसी प्रकार मोक्षार्थी पुरुष को पहले तो आत्मा को जानना चाहिये और फिर उसी का श्रद्धान करना चाहिये कि यही ग्रात्मा है, इसका आचरण करने से अवश्य कर्मों से छूटा जा सकेगा और फिर उसी का अनुचरण करना चाहिये। साध्य सिद्धि इसी प्रकार संभव है अन्य प्रकार से अनुपपत्ति है । समयाभूत गाथा १७-१८ की भारमख्याति टीका २. स्वरूप में चरण ( रमण करना) चारित्र है । स्वसमय में प्रवृत्ति करना ऐसा इसका वास है । यहो वस्तु का स्वभाव होने से धर्म है। शुद्धचैतन्य का प्रकाश करना यह इसका अर्थ है। वहीं यथावस्थित ग्रात्मगुण होने से साम्य है | और साम्य दर्शन तथा चारित्रमोहनीय के उदयजनित समस्त मोह और क्षोम के अभाव के कारण प्रत्यंत निर्विकारी जीव का परिणाम है। प्रवचनसार गाथा ७ की आरमख्याति टोका ।
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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