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________________ व्यक्तित्व तथा प्रभाव ] [ ८६ अपने विचारों को व्यक्त करता है, तब उसकी वह अभिव्यक्ति छदात्मक होती है। आचार्य अमृतचन्द्र की टीकाएं भी इसी विशेषता से मण्डित हैं। अनभूति की प्रबलता में उनको अभिव्यक्ति मा से पद्य का रूप धारण करती है, इसलिए अपनी टीका में उन्होंने पद्यांशों के बीच यत्र तत्र पद्यों की समायोजना भी की है। वे रससिद्ध नाटककार तथा स्वयंसिद्ध कवीन्द्र थे । इस प्रकार अमृतचन्द्र के सर्वतोमुखी व्यक्तित्व का एक पहलू 'नाटककार" के रूप में विद्यमान है। अम तचन्द्र काव्यकार के रूप में प्राचार्य अमृतचन्द्र के बहुमुखी व्यक्तित्व के अंतर्गत उत्कृष्ट काव्यकार का रूप भी उनकी कृतियों में प्रस्फुटित है । वे प्रौढ़तम संस्कृत गद्य लेखक, रससिद्ध पद्य प्रणेता तथा सफल चम्पूकाधकार है। कुन्दकुन्द आचार्य के समधाभत, प्रवचनसार तथा पंचास्तिकाय पर लिखित गद्य टाकाएं उनके असाधारण, चमत्कारी एवं अर्थगांभीर्ययुक्त गद्य की परिचायक है । समयसार कलश, तत्त्वार्थसार, पुरुषार्थसिद्धय पश्य तथा लघुतत्त्वस्फोट ये कृतियां उनके सरस, सुबोध, मनोहारि पद्य के प्रमाण हैं। समयप्राभूत की प्रात्मख्याति गय टीका तथा उसमें यथासमय आगत पद्यों का समुचित प्रयोग उनकी सफल चम्पूकाव्य शैली के उदाहरण हैं। यहां हम उनके काव्यकार के रूप का गद्य, पद्य तथा चम्पू काप की दृष्टि से मूल्यांकन प्रस्तुत करते हैं । __काव्यशास्त्रकार रसयुक्त वाक्य को काव्य की सज्ञा देते है ।' तथा अंतरात्मा की अनुभूति को रस' कहते हैं । भावों के उत्कर्ष को भी "रस" नाम अभिहित किया जाता है। जैन साहित्य निर्माताओं ने लौकिक तथा अलौकिक दोनों ही अवस्थानों में अनिर्वचनीय आनन्द को को रस कहा है। अध्यात्म साहित्य में निश्चयनय की शैली के कथनानुसार आत्मानुभूति को ही रस माना गया है । १. (विश्वनाथ) 'वाक्यं रसात्मकं काव्यम् ।" काव्यादर्श २. 'रस्वते अन्तरात्मनाऽनुभूयते इति रसः" अभिधान गजेन्द्र ३. 'भावोत्कर्षा रमः स्मृतः" हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन, भाग १ डा. नेमिचन्द्र, पृष्ठ २२६ ४. वही, पृष्ठ २२७ ५. वही, पृष्ठ २२७
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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