SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यक्तित्व तथा प्रभाव ! साक्षात् जानता है । वह उदार, गम्भीर, महान अभ्यदय बाला, आसवरूपी योद्धा को जीतने वाला, ज्ञानरूपी धनुष को धारण करने वाला तथा अजेय है । उसका भोजन आनन्दरूप अमृत है। वह जप्ति-क्रियारूप सहज अवस्था को नचाता है। वह आकूलतारहित (अनावल) तथा परिग्रह रहित (निरुपाधि) है। उमको ज्ञानसुधांशु तथा चिन्मयज्योति' नाम से भी अभिहित किया है। उस सहज परमानन्द रस पूर्ण ज्ञान को मोक्ष अधिकार में कृतकृत्य तथा जयवन्त प्रवर्तने वाला लिखा है।' अन्तिम में से समस्त जनता प्राःद साव का भलीभांति नाश करने वाला, पद-पद पर बंध मोक्ष की रचना से दूर रहने वाला, प्रत्यंत बाद, निजज्ञान रस के विस्तार से अचल परिपूर्ण तेजशाला, टंकोत्कीर्ण प्रकट महिमा वाला, ज्ञानपुंज स्फुरित होने बाला लिखा है । नाटककार अमृतचन्द्र ने समयसार नाटक का अंगभूत (प्रधान) रम शांतरस दर्शाया है। शांतरस अलौकिक रस है। ज्ञानज्योति नायक भी अलौकिक नायक है। शुद्धात्मा का नाटक भी अलौकिक नाटक है। इसके नाटककार अमृत चन्द्र भी अलौकिक व्यक्ति हैं, ऐसे नाटक का दर्शक सम्यग्दृष्टि चैतन्यमूर्ति शानी अलौकिक आत्मा है । इसीलिए नाटककार ने समस्त लौकिक जनों को अलौकिक शांतरस में मग्न होने के लिए प्रेरित किया है। वे लिखते हैं - "हे जगज्जीवों अनादि संसार से लेकर आज तक अनुभव किये गये मोह को अब तो छोड़ो और रसिकजनों को रुचिकर, उदित होते हुए ज्ञान का आस्वादन करो ।' यह ज्ञान समुद्र भगवान १. ज्ञानज्योतिः स्फुरति परमोदात्तमत्यंत धोर।। साक्षात् कुर्वन-निरुपधि पृथग्द्रव्य निर्भासि विश्वम् ।। समयसार कलश कमांक ४६ २. प्रथमहामदनिर्भरमंथर, समररंगारागतमास्त्रवम् । प्रयमुदारगंभीरमहोदयो, जयति दुजंयबोधधनुर्धरः ।। समयसार, अाम्रव अधिकार, कलश नं. ११३ ३. प्रानन्दामतनिस्यभोजि सहजावस्थां स्फुटं नाटयद् । धीरोदारमनाकुलं निरुपघि ज्ञानं समुन्मज्जति ।। ___ समयसार, बंध अधिकार, कलश नं. १६३ ४. समयसार कला १०० (अवबोधसुघाप्लवः) ५. वही, कलश १२५ ६. वही, कलश १८॥ ७. वही, कलश १६३ ८. 'चिन्मूरत नाटक देखन हारो' नाटक समयसार, पं. बनारसीदास, पृष्ठ ६३ ६. त्यजतु जगदिदानी मोहमाजन्मलीनं, रसयत रसिकानां रोचनं ज्ञानमुद्यत् । समयसार कलश क्रमांक २२
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy