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________________ जीवन परिचय ) । ७५ गत क्रूरतादि दोषों से रहित होने से कुलविशिष्ट हैं, अन्तरग शुद्ध रूप का प्रतीक बहिशद्ध रूप से जो रूपविशिष्ट हैं, बाल्यावस्था तथा वद्धावस्था की बुद्धिविक्लवता से रहित और यौवनोद्रेक की विक्रिया से रहित होने से वय बिशिष्ट हैं, याक्त श्रमणाचार का पालन करने तथा कराने सम्बन्धी पौरुषेय दोषों को नष्ट कर देने से मुमुक्षाओं के अतिआश्रयरूप तथा श्रमणों को अति इष्ट हैं ऐसे गणो के निकट जाकर मुझे शुद्धात्मतत्त्व को उपलब्धि से अनुगृहीत फेरी कहता हुआ प्रणत होता है पश्चात् गणी प्राचार्य द्वारा "तुझे शुद्धात्मतत्व को उपलब्धि हो" ऐसा कह कर अनुगृहीत किया जाना अनुगृहीत विधि है । इस प्रकार प्राचार्य अमृतचन्द्र ने दीक्षा विधि का विशद् स्पष्ट व्याख्यान किया है। पश्चात् यथाजातरूपघर श्रमण के लिए ५ महाव्रत (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह), ५ समिति (ईा, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेपोत्सर्ग) ५ इन्द्रियजय, ६ आवश्यक तथा ७ गुण इस तरह अदाईस मूलगुणों का स्वस्वर र कथन किया है। प्रागे श्रमणचर्या की विस्तृत व्याख्या से स्पष्ट है कि प्राचार्य अमृतचन्द्र भी एक महान प्राचार्यपदानुकूल सर्वगुण सम्पन्न, जैनाचार परम्परा तथा सिद्धान्त में निष्णात थे। कुन्दकुन्दाचार्य तथा उनको परम्परा में प्रणीत पूर्वाचार्यों के समग्र परमागमरूप समुद्र में अवगाहन करके वे अपने आत्मा को निर्मल बनाने में संलग्न थे। समयसार की आत्मख्याति टीका में प्रारम्भ में ही टीका रचना का उद्देश्य परमविशुद्धि प्राप्त करना लिखा है।' एक पद्य द्वारा १. नतो हि श्रामण्यार्थी प्रगतोऽनुगृहीतश्च भवति । तथाहि-प्राचरिताचारितसम स्तविरति वृत्तिसमानात्मरूपश्चामण्यत्वान श्रमणं, एवंविधामण्याचरणाचरणप्रवीणत्वात् गुगणाढ्य, सकललकि कजननिः शंकभवनीयस्यात् कुलक्रमागतक्रौर्यादिदोषजिनत्त्वाचच कुलविशिष्ट, अन्तरंगशुरूपानुमापाबहिरंग शुद्धरूपत्वात् रूपविशिष्ट, शववार्यक्यकृतबुद्धिविक्लवत्वाभावाद्यौवनोद्रे कबिपिया विविनाबुद्धित्याच्च वयोविशिष्ट, निगेयितयथाक्तश्रामण्यावरणाचा रणविषयगौरुषेयदोषत्वेन मुमुक्षुभिरभ्युपगनतरत्वान् श्रमपरिष्टतरं च मशिन शुद्धात्मतत्वोपलम्भसाधकमात्रार्य शुद्धात्मतत्वोपन्नम्भसिद्धया मामननुगृहाणेायुगमपन् प्ररानो भवति । एवमियं ते सुद्धात्मतत्वोपत्नम्भसिद्धिरिति नेम प्रार्थितार्थेन रायुज्यमानोऽनुगृहीतो भवति । प्रवचनसार गाथा २०३ टीका २. वहीं, गाथा २०५, २०६, २०८, २०६ ३. मभयमारकलश, क्रमांक ३
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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