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जीवन परिचय ।
योगदान है। इसके अतिरिक्त तत्त्वार्थसूत्र की टोका सर्वार्थ सिद्धि जैन तत्वज्ञान की उद्घाटक टीकाकृति है । छठवीं सदी के आचार्य जोइन्दु (योगेन्दुदेव) द्वारा प्रणीत योगसार तथा परमात्मप्रकाश अध्यात्मामृत से भरपूर कृतियां हैं। गुणभद्राचार्य की कृति 'प्रात्मानुशासन' अध्यात्मामृत का अनुपम निष्य है। आचार्य अकषकदेव ने सटशी, पगसंग्रह, न्यायविनिश्चय, लघीयस्त्रय, सिद्धिविनिश्चय तथा राजबार्तिक आदि प्रौढ़तम-विद्वतापूर्ण ग्रन्थ रचकर जनतत्त्वज्ञान तथा जैन न्याय को पल्लवित, पुजिगत तथा फलित किया । इनके ही अनगामी (ईस्वी नवमी सदी में) आचार्य विद्यानन्दि हुए जिन्होंने प्राप्तपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, युक्त्यनुशासन टीका, अष्टसहस्री तथा श्लोकवार्तिक प्रभृति महानदार्शनिक गम्भीर तत्त्वज्ञान निरूपक ग्रंथों का प्रणयन कर उक्त त्रिवेणी के प्रयाह को गतिमान किया।
कुन्दकुन्दाचार्य की इस सहस्रवर्षीय परम्परा में ही आचार्य 'अमृतचन्द्र' पूर्ण चंद्र की भांति अवतरित हुए, जिन्होंने कुन्दकुन्द से प्रबहमान त्रिवेणी की एक नहीं, तीनों ही धाराओं को अपने असाधारण व्यक्तित्त्व द्वारा विकसित किया तथा अपनी अनुपम अर्थगाम्भीर्ययुक्त कृतियों द्वारा गति प्रदान की। यदि समग्र जैनाचार्य परम्परा में कुन्दकुन्द मार्तण्ड बनकर समग्र आचार्य परम्परा को अलौकिक अध्यात्म ब तत्त्वज्ञान से आलोकित करते हैं तो आचार्य अमतचन्द्र सहस्रवर्ष पश्चात् पूर्णचन्द्र बनकर अपनी उत्तरवर्ती सहस्रवर्षीय अध्यात्म-तत्त्वज्ञान तथा आचार परम्परा को अपनी आध्यात्मिक कृतियों से सम्पुष्ट तथा सम्बधित करते हैं। साथ ही परमानन्द रस के पिपासुजनों को अध्यात्मामृत का पान करा कर अलौकिक शान्ति प्रदान करते हैं। उनकी टीका लिखने का उद्देश्य हो भव्य जीवों का हित करना तथा परमानन्द के पिपासूनों को अध्यात्मामृत का पान कराना है। आचार्य अमलचन्द्र द्वारा प्रतिपादित -प्रवाहित त्रिवेणी में अबगाहन करने घाले अनेक आचार्य, विद्वान, लेखक, सम्पादक तथा अध्येता हए हैं, जो एक हजार वर्ष की सुदीर्घ परम्परा के पोषक एवं प्रसारक हुए हैं। उनमें कुछ के नाम इस प्रकार हैं - आचार्य अमितगति प्रथम तथा द्वितीय
१५ ईस्वी से १०२१ के बीच), तत्त्वानुशासन के कर्ता रामसेन, प्राचार्य पद्मप्रभमलधारीदेव, मुनिनागसेन (बारहवीं सदी ईस्वी), आचार्य जयसेन, आचार्य प्रभाचन्द्र, (तेरहवीं सदी ईस्वी) बालचन्द (चौदहवीं सदी ईस्वी) शुभचन्द्र भट्टारक (ईस्वी १६१६), पण्डित