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________________ ७० ] [ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व J गौतम गणधर के पश्चात् तीसरे स्थान पर लिया जाने लगा । उनके पश्चाद्वर्ती दिगम्बराचार्यों ने अपने को कुन्दकुन्दान्वयी अथवा मूल संघी मानने में गौरव का अनुभव किया. आचार्य कुकु को पुनबिद प्राचीन श्रमणपरम्परा का प्रतीक माना जाने लगा। कुन्दकुन्द की प्रभुता का महत्त्व इसी बात से प्रमाणित है कि दिगम्बर जैनों में आज तक जितनी भी मूर्तियां मन्दिरों में तीथों में तथा चैत्यालयों में देश-विदेश में जहां कहीं प्रतिष्ठित की गईं, उन सब पर आचार्य कुन्दकुन्दान्नाय की मुद्रा को अवश्य अंकित किया गया । दिगम्बरों में तो यहां तक उक्तियां प्रचलित हो गई कि "हुए, न है, न होहिंगे मुनीद्रकुन्दकुन्द से । " आचार्य कुन्दकुन्द जैन अध्यात्म तथा जैन तत्त्वज्ञान दोनों के हो पुरस्कर्ता थे । एक ओर जहां उन्होंने अपने महाग्रन्थ "समयप्राभृत" के द्वारा जैन अध्यात्म का प्रस्थापन किया। वहीं दूसरी ओर प्रवचनसार - पंचास्तिकाय द्वारा जैन तत्त्वज्ञान को मूर्तरूप प्रदान किया। साथ ही नियमसार, अष्टपाहुड़ द्वारा जैनाचार की मूल विमलसरिता को प्रवाहित किया । उपर्युक्त जैन अध्यात्म, जेनतत्त्वज्ञान तथा जैनाचार की त्रिवेणी को आगे बढ़ाने, विकसित करने तथा प्रचार-प्रसार करने में कई माचार्यों ने अपनी मौलिक तथा टीकाकृतियों द्वारा बहुमूल्य योगदान दिया । उनमें कुछ प्रमुख आचार्य तथा उनकी कृतियां निम्नानुसार हैं । ( ईस्वी दूसरी सदी के ) आचार्य उमास्वामी द्वारा रचित तस्वार्थ सूत्र 'जैनों की बाईबिल' की महत्ता को प्राप्त है । समन्तभद्राचार्य ( तीसरी सदी ईस्वी) द्वारा विरचित स्वयंभूस्तोत्र देवागमस्तोत्र, युक्त्यनुशासन, जिनस्तुतिशतक आदि गम्भीर तत्रज्ञान विषयक तथा 'रत्नकरण्डश्रावकाचार' जैनाचार विषयक सर्वश्रेष्ठ कृतियां हैं। पाँचवीं सदी के आचार्य पूज्यपाद (देवनन्दि ) कृत समाधितन्त्र तथा इष्टोपदेश कृतियाँ कुन्दकुन्द के अध्यात्म से अनुप्राणित हैं। अध्यात्मरस से सराबोर इन कृतियों का कुन्दकुन्द की अध्यात्म धारा के विकास में असाधारण १. मंगल भगवान् वीरो, मंगलं गोतमो गणी । मंगलं कुन्दकुन्दार्यो, जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् || २. कविवर वृन्दावन द्वारा रचित स्तुति का एक काव्य ( पंचास्तिकाय प्र.प्र. १ ईस्वी सन् १९१५) ३. जैन साहित्य का इतिहास, भाग २, पृष्ठ ६५
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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