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प्रथम अधिकार पदार्थ 'अस्ति' है ऐसा कौन जानता है ? शुद्धात्म पदार्थ नहीं है ऐसा कौन जानता है । अस्ति नास्ति है ऐसा कौन जानता है। और अवक्तव्य है, ऐसा कौन जानते हैं। इस प्रकार ये त्रेसठ भेद में मिलाने से अज्ञानवादियों के सड़सठ भेद होते हैं। अज्ञानवाद की स्थापना करने वाले के नाम निम्न प्रकार हैं
शाकल्य, वल्कल, कुथुमि, सत्यमुनि, नारायण, कंठ, माध्यदिन, भोज, पैप्पलायन, वादरायण, स्विष्टिक ( सिद्धिक्क ) दैत्यकायन, वसु, जैमिनी प्रमुख हैं।
॥ अक्रियावादी का वर्णन समाप्त ॥
विनयवादियों का कथन वेणइयदिट्ठीणं वसिटे-पारासर-जउकण-वम्मीक-रोमहस्स-णिसच्चदत्त-वास-एलापुत्त-उवमणव-इंददत्त-अयच्छिप मुहाणं बत्तीसा ( ३२ )
वैनयिकदृष्टीनां वसिष्ठ-पारासर-जतुकर्ण-वाल्मीकि-रोमहर्षणि-सत्यदत्तव्यास.एलापुत्र-औपमन्यव-ऐन्द्रदत्त-आगस्त्यादीनां द्वात्रिंशत् ( ३२ )
इदि मिलिदूण तिसट्ठिउत्तरतिसदीकुवायनिरायण प्ररूवयं । इति मिलित्वा त्रिषष्टयुत्तत्रिशतकुवादनिराकरणं प्ररूपितं ।
विनयवादियों के बत्तीस भेद इस प्रकार हैं जो विनय से ही मोक्ष मानते हैं । उनका कथन है कि राजा, ज्ञानी, यति, बाल, वृद्ध, माता और पिता इनका मन, वचन, काय और दान से विनय, सत्कार, सेवा करना चाहिए । इस प्रकार विनय करने योग्य आठ जनों का मन, वचन, काय और दान इन चार भेदों से गुगा करने पर विनयवादियों के बत्तीस भेद होते हैं।
वैनियिक मिथ्यात्व का स्थापन करने वालों का नाम इस प्रकार है
वसिष्ठ, पाराशर, जतुकर्ण, वाल्मीकि, रोमहर्षणि, सत्यदत्त, व्यास, एलापुत्र, औपमन्यव, ऐन्द्रदत्त, आगस्त्यादि बत्तीस मानव हैं। इस प्रकार क्रियावादी-अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादियों के तीन सौ सठ भेद हैं। ___इस प्रकार वे स्वच्छन्द होकर वस्तु स्वरूप का प्रतिपादन करते हैं ये तीन सौ सठ पाखण्ड जीवों को व्याकुलता उत्पन्न करते हैं और अज्ञानी जीवों के चित्त को हरते हैं । तीन सौ त्रेसठ ही मिथ्यात्व नहीं है अपितु असंख्यातलोक प्रमाण हैं। जो वचन के अगम्य हैं। इन सर्व मिथ्यात्व पाखण्डों का निराकरण जिसमें किया जाता है उसको दृष्टिवाद अंग