________________
अंगपण्णत्त
जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष ये सात पदार्थ नास्ति रूप हैं । काल की अपेक्षा और नियति की अपेक्षा गुणा करने से १४ भेद होते हैं, इन १४ भेदों को सत्तर भेद मिला देने से अक्रियावादियों के ८४ भेद होते हैं ।
४६
अक्रियावादी मिथ्यादृष्टियों के प्रमुख मनुष्यों के नाम निम्न प्रकार हैं । मरीचि, कविल, उलूक, गार्ग, व्याघ्रभूति, बादबलि, माठर, मौद्गलायन आदि । इन्होंने अक्रियावाद मिथ्यात्व की स्थापना की थी । अक्रियावादी • पुरुषार्थ का क्रिया से कार्य की सिद्धि नहीं मानते हैं ।
अज्ञानवादियों के ६७ भेदों का वर्णन
अण्णा दिट्टीणं सायल्ल - वक्कल - कुहुमि - सच्च मुगि-नारायण-कठमज्झंदिण-भोय-पेप्पलायन - वायरायण - सिद्धिक्क - देतिकायण - वसु-जेमपिहाणं सगसट्टी (६७)
ज्ञानदृष्टीन शाकल्य- वल्कल - कुथुमि - सत्यमुनि - नारायण - कठमाध्यंदिन - भोज-पैप्पलायन - वादरायण - स्विष्टिक - दैत्यकायन - वसु - -प्रमुखानां सप्तषष्टिः (६७)
- जैमिनि
अज्ञानवादी अज्ञान को ही मुख्य मानता है, अज्ञान से ही मोक्ष मानता है। पुण्य, पाप, जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष नव तत्त्व हैं। जो किसी नय ( स्वचतुष्टय ) की अपेक्षा अस्ति रूप है परचतुष्टय की अपेक्षा नास्ति हैं। दोनों धर्म की अपेक्षा अस्ति नास्ति रूप हैं क्योंकि अस्ति नास्ति दोनों एक साथ रहते हैं । दोनों का उच्चारण एक · साथ नहीं हो सकता अतः अस्ति अवक्तव्य है । नास्ति भी पूर्ण रूप से कह नहीं सकते, अतः नास्ति अवक्तव्य है । दोनों का एक साथ उच्चारण नहीं हो सकता अतः अस्ति नास्ति अवक्तव्य है । इस प्रकार जीवादि नौ पदार्थों का सातभंगों के गुणा करने पर त्रेसठ भंग होते हैं । यह सम्यक्पद है ।
अज्ञानवादी, जीवादि पदार्थों का विश्वास नहीं करते हैं अतः अज्ञान- वादी कहते हैं 'जीवास्ति' जीव है, यह कौन जानता है। जीव नास्ति यह कौन जानता है । इसी प्रकार त्रेसठ भंगों पर विश्वास नहीं करने से अज्ञानवादियों के त्रेसठ भेद होते हैं ।
द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा आत्मा शुद्ध पदार्थ है । पर्यायार्थिक नय की • अपेक्षा आत्मा नव पदार्थ मय है परन्तु द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा नव पदार्थ से अतीत शुद्ध आत्मा है । परन्तु अज्ञानवादी कहता है कि शुद्धात्म