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प्रथम अधिकार
विशेषार्थ जिस अनुयोग में महापुरुषों के जीवन का वर्णन है जो बोधि' और समाधि का निधान ( कारण ) है वह प्रथमानुयोग है।
लोक अलोक का विभाग, युग का परिवर्तन, चतुर्गति के भ्रमण का स्थान आदि का कथन करनेवाला करणानुयोग है।
मुनि और श्रावकों के धर्म का वा उनकी क्रियाओं का वर्णन करने वाला चरणानुयोग है।
जीव, अजीव, आस्रव, बंध संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य, पाप आदि तत्त्वों का वर्णन जिसमें है, वह द्रव्यानुयोग है।
जीव पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश ये पाँच द्रव्य पंचास्तिकाय हैं। पंचत्थिकायकहणं वक्खाणिज्जइ सहावदो जत्थ । विक्खेवणी वि य कहा कहिज्जइ जत्थ भव्वाणं ॥ ६१ ॥
पंचास्तिकायकथनं व्याख्यायते स्वभावतो यत्र ।
विक्षेपिणी अपि च कथा कथ्यते यत्र भव्यानां ॥ पच्चक्खं च परोक्खं माणं दुविहं गया परे दुविहा । परसमयवादखेवो करिज्जई वित्थरा जत्थ ॥ ६२ ॥
प्रत्यक्ष च परोक्ष मानं द्विविधं नयाः परे द्विविधाः।
परसमयवावक्षेपः क्रियते विस्तारेण यत्र ॥ सुभव्य जीव के (आसन्न भव्य के) प्रश्नानुसार जिसमें चार अनुयोग, पंचास्तिकाय, यति श्रावक धर्म, लोक संस्थान का वर्णन है वह आक्षेपिणी कथा है । तत्त्वों का निरूपण करने वाली आक्षेपिणी कथा है। भव्यजीवों के लिए विक्षेपिणी कथा का वर्णन भी प्रश्न व्याकरण में किया जाता है ॥६१।।
प्रत्यक्ष और परोक्ष के भेद से प्रमाण दो प्रकार का है। "द्रव्या१. सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की प्राप्ति बोधि है। २. रत्नत्रय को धारण कर उसका अन्त तक निर्वाह करना समाधि है । ३. इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना पदार्थों को जानने वाले अवधिज्ञान,
मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण हैं । ४. इन्द्रिय और मन की सहायता से पदार्थों को जानने वाले मतिज्ञान और
श्रुतज्ञान परोक्ष प्रमाण हैं। ५. द्रव्य की मुख्यता से कथन करने वाला द्रव्याथिक नय है।