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अंगपण्णत्ति
मूक प्रश्न वा मनस्थ-कोई मानव मौन से आकर बैठा है, उस समय यदि मेष लग्न हो तो मन में मनुष्य की चिन्ता, वृष लग्न हो तो चतुष्पद गाय, भैंस आदि की, मिथुन हो तो गर्भ की, कर्क हो तो व्यवसाय की, सिंह हो तो अपनी, कन्या हो तो स्त्री की, तुला हो तो धन की, वृश्चिक हो तो रोगी की, धनु हो तो शत्रु की, कुभ हो तो स्थान की और मीन हो तो देव सम्बन्धी चिन्ता जानना चाहिए । - आचार्यों ने सुविधा के लिए प्रश्न के धातु, नर ( जीव ) और मूल ये तीन नाम रखे हैं। अतः अ, आ, इ, ए, ओ, अः, क ख ग घ च छ ज झ ट ठ ड ढ य श ह ये व्यंजन और स्वर जीव (नर) संज्ञक हैं । उ ऊ अंत थ द ध प फ ब भ व स ये स्वर व्यंजन धातु संज्ञक हैं और ई ऐ और ड़ अन म र ष ये स्वर व्यंजन मूल संज्ञक हैं। प्रश्न करते समय इन स्वर व्यंजनों के उच्चारण से फल कहना धातु नर मूलजा प्रश्न कहलाता है। इस प्रकार प्रश्नव्याकरण में अनेक प्रकार के प्रश्नों का उत्तर दिया गया है।
आक्खेवणी कहाए कहिज्जइ पण्हदो सुभब्वस्स । परमदसंकारहिदं तित्थयरपुराणवत्तंतं ॥ ५९॥
अवक्षेपणी कथा कथ्यते प्रश्नतः सुभव्यस्य ।
परमतशंकारहितं तीर्थंकरपुराणवृत्तान्तं ॥ पढमाणुयोगकरणाणुयोगवरचरणदव्वअणुयोगं । संठाणं लोयस्स य यदिसावयधम्मवित्थारं ॥ ६० ॥
प्रथमानुयोगकरणानुयोगवरचरणद्रव्यानुयोगानि ।
संस्थानं लोकस्य च यतिश्रावकधर्मविस्तारं ॥ इस अंग में कथित, आक्षेपिणी, विक्षेपिणी, संवेदिनी और निर्वेदिनी कथाओं का कथन और लक्षण इस प्रकार है
प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग। परमागम पदार्थों का तथा तीर्थंकरादि का वृत्तान्त, लोक संस्थान, श्रावक, यति धर्म का विस्तार, पंचास्तिकाय आदि का, परमत की शंका रहित कथन करना अर्थात् स्वमत का स्थापन करना, आक्षेपिणी कथा है। अर्थात् जिसमें यह कथन है वह आक्षेपिणी कथा है ।। ५९-६० ॥