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अंगपण्णत्ति .. प्रकार का दान, जलगालन, रात्रिभोजनत्याग, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का पालन ये श्रावक की ५३ ( त्रेपन ) क्रिया हैं। ___ इस प्रकार श्रावक के सर्व व्रतों का विधान, उनके धारण की विधि, मंत्रोच्चारण आदि के विधान का जिसमें कथन है वह उपासकाध्ययनांग है। श्रावक के व्रत धारण की विधि, गर्भाधानादि एक सौ आठ क्रियाओं का क्रियाविशालपूर्व में विस्तार पूर्वक करेंगे। ____ इस उपासकाध्ययनांग के ग्यारह लाख सत्तर हजार ( ११७००००) पद हैं । इस अंग के श्लोक की संख्या उनसठ नील सतहत्तर खरब पैंतीस अरब इकोत्तर लाख पचपन हजार ( ५९७७३५००७१५५००० ) है। इस अंग की अक्षर संख्या उन्नीस शंख, बारह नील, पचहत्तर खरब, बीस अरब, बाईस करोड़, नियासी लाख, साठ हजार (१९१२,७५,२०,२२,८९,६००००) प्रमाण है। ॥ इस प्रकार उपासकाध्ययनांग का कथन समाप्त हुआ ।।
अन्तकृतदशांग का कथन अंतयडं वरमंगं पयाणि तेवीसलक्ख सुसहस्सा । अट्ठावीसं जत्थ हि वणिज्जइ अंतकयणाहो ॥४८॥
अन्तकृद्वरमङ्ग पदानि त्रयोविंशतिलक्षाणि सहस्राणि ।
अष्टाविशतिः यत्र हि वर्ण्यते अन्तकृन्नाथः ॥ पडितित्थं वरमुणिणो दह दह सहिऊण तिब्वमुवसग्गं । इंदादिरइयपूयं लद्धा -मुंचंति संसारं ॥ ४९ ॥
प्रतितीर्थं वरमुनयो दश दश सोढ्वा तीव्रमुपसर्ग।
इन्द्रादिरचितपूजां लब्ध्वा मुञ्चन्ति संसारं ॥ माहप्पं वरचरणं तेसि वणिज्जए सया रम्मं । जह वड्ढमाणतित्थे दहावि अंतयडकेवलिओ ॥ ५० ॥
माहात्म्यं वरचरणं तेषा वर्ण्यते सदा रम्यं ।
यथा वर्धमानतीर्थे दशापि अन्तकृत्केवलिनः॥ जिस अंग में अन्तकृत नाथ ( अन्तकृत केवली ) का वर्णन किया ‘जाता है, वह श्रेष्ठ अन्तकृत अंग है, जिसके तेईस लाख अट्ठाइस हजार पद हैं ॥४८॥