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अंगपण्णत्त
इन देवों में इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रश, पारिषद, आत्मरक्ष, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विष जाति के देव हैं । उनमें इन्द्रराजा तुल्य है शेष देव इन्द्र के परिवार के देव हैं, सामानिक — इन्द्र के समान विभूति वाले हैं, त्रास्त्रिश - पुरोहित आदि के समान है, पारिषदसभासद के समान हैं, आत्मरक्ष - अंगरक्षक के सदृश हैं, लोकपाल - कोट - पाल के समान है, अनीक - सेना तुल्य है, प्रकीर्णक- - प्रजा के समान है, अभियोग्य जाति के देव - दास के समान है और किल्विषिक - चण्डाल को उपमा को धारण करने वाले हैं ।
अग्र, वल्लभा आर परिवार देवताओं के भेद से तीन प्रकार की देवियाँ होती हैं । एक देव के कम से कम बतोस देवांगना होती हैं विशेष संख्यातों देवांगना होती हैं ।
इनकी उत्कृष्ट आयु असुर कुमारों की एक सागर, नागकुमार को तीन पल्य, सुपर्णकुमार को अढाई पल्य, द्वीपकुमार को दो पल्प और शेष छह देवों की उत्कृष्ट आयु डेढ़ पल्य प्रमाण है । यह उत्कृष्ट आयु इन्द्रों की होती है । जघन्य आयु दश हजार वर्ष को है । मध्यम आयु के अनेक भेद हैं । देवियों को उत्कृष्ट आयु तोन पल्योपम, ढाई पल्योपम और पल्योपम के आठवें भाग प्रमाण है ।
असुरकुमारों की शरीर की ऊँचाई पच्चीस धनुष और शेष देवों के शरीर की ऊँचाई दश धनुष प्रमाण है । यह प्रमाण मूल शरीर का है । विक्रिया निर्मित शरीर की ऊँचाई अनेक प्रकार की होती है ।
दश हजार वर्ष की आयु वाले देव अपनी शक्ति से एक सौ मनुष्यों को मारने वा पोषण करने में समर्थ हैं तथा डेढ़ सौ धनुष प्रमाण लम्बे चौड़े और मोटे क्षेत्रको बाहुओं से वेष्ठित करने और उखाड़ने में समर्थ हैं ।
पल्योपम आयु के धारक देव छह खण्डों को उखाड़ने और छह खण्ड में स्थित मानव और तिर्यञ्चों को मारने अथवा पोषण करने में समर्थ हैं ।
एक सागरोपम आयु के धारक देव जम्बूद्वीप को समुद्र में फैंकने में समर्थ और जम्बूद्वीपस्थ तिर्यञ्च और मनुष्यों को मारने और पोषण करने समर्थ हैं।
जिनकी आयु दश हजार वर्ष या करोड़ वर्ष रूप संख्यात वर्ष की आयु है वे एक समय में संख्यात योजन जा सकते हैं । जिनकी आयु पल्य वा सागर सरूप असंख्यात वर्षों की है, वे एक समय में असंख्यात योजन प्रमाण जा सकते हैं ।