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गणत
पाणि- पात्र से ग्रास नीचे गिर जाये तो पाणिता पिण्ड पतन अन्तराय
है ।
पाणि ( हाथ ) पात्र से कौआ ग्रास ले जाए वह काकादि पिण्डहरण अन्तराय है ।
दोनों पैरों के बीच में से चूहा आदि पंचेन्द्रिय जीव निकल जाने पर जीव संताप नामक अन्तराय है ।
आहार करते समय यतिजन के उदर से कृमि ( कीड़ा ) मल, मूत्र, रक्त, पीप आदि कुछ भी निकल जाय तो अन्तराय होती है ।
आहार करते समय मुख से कफ आदि निकालना निष्ठीवन अन्तराय है । आहार करते-करते साधु बैठ जाय तो उपवेशन नामक अन्तराय है । मुनिराज के मुख में अथवा हाथ में बाल, नख, प्राणी का शरीर अस्थि आदि आ जाय तो अन्तराय होती है ।
चर्या को जाते समय मुनिराज पर कोई प्रहार करे तो अन्तराय होती
है ।
ग्राम दाह-ग्राम में अग्नि लगी हो, ग्राम जल रहा हो, हाहाकार मचा हो तो साधु आहार नहीं करते। उनके अन्तराय हो जाती है ।
अशुभ ग्रवीभत्स्य वाक श्रवण अन्तराय अर्थात् अशुभ उग्र तीव्र मर्म भेदी वचन सुनने में आ जाय, निर्दय और भयावह शब्द श्रवण गोचर हो जाने पर अन्तराय हो जाता है ।
कोई उपसर्ग आ जाता है तो अन्तराय होती है ।
दातार के हाथ से भोजन का पात्र गिर जाय तो या आहार नोचे गिर जाय तो अन्तराय होती है ।
मुनि चर्या के लिए बिना पड़गाहन किये श्रावक के घर में कहाँ तक जा सकते हैं जहाँ तक प्रायः सभी लोग जा सकते हैं । उस घर प्रवेश के समय यदि अभोज्य आहार के अयोग्य हिंसक चण्डाल, वेश्या, शूद्र आदि
के घर में प्रवेश हो जाये तो अन्तराय हो जाती है
जानु अधः स्पर्शन, बिना दिया कुछ ग्रहण कर ले अदत्त ग्रहण नामक अन्तराय है ।
पाँव के द्वारा भूमि पर से कुछ उठा लेना तो अन्तराय होता है । हाथ के द्वारा कुछ उठा लिया जाय तो अन्तराय है । चण्डाल आदि का स्पर्श, इष्टका मरण हो जाय, कलह हो जाय आदि और भी आहार के अन्तराय के अनेक कारण हैं जिसके उपस्थित होने पर साधु आहार को छोड़ देते हैं