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तृतीय अधिकार
२१७ इन वस्तुओं के खाने पर अथवा इन संसर्ग हुई वस्तु के खाने पर अन्तराय होती है। ___मद्य की, मृतक प्राणी आदि की दुर्गन्ध आने पर अन्तराय करना गन्ध सम्बन्धी अन्तराय है।
किसी वस्तु को देखकर उसकी दूसरे पदार्थ का मन से स्मरण अथवा संकल्प हो जाने पर आहार में अन्तराय होती है। जैसे किसी लाल वस्तु को देखकर खून का संकल्प हो जाना यह मांस जैसा है । इत्यादि मानसिक विचार हो जाने पर अथवा मन में संशय हो जाने पर आहार में अन्तराय होते हैं यह मन सम्बन्धी अन्तराय है तथा और भी साधु की कुछ विशेष अन्तराय हैं जैसे
साधु के आहार के लिए जाते समय अथवा खड़े रहते समय उनके ऊपर कौआ आदि बीट कर देते हैं तो वह काकनामा भोजन का अन्तराय
आहार को जाते समय, अशुचि मल-मूत्रादि वस्तु से चरण लिप्त हो जाना वह अमेध्य अन्तराय है। ___ भोजन करते समय छर्दि (वमन) हो जाय तो छदिनामा अन्तराय है।
आहार करते समय कोई कहता है "इसको यह आहार मत देवो" ऐसा कहने पर साधु आहार छोड़ देता है वह रोध नाम का अन्तराय है।
अपने या दूसरे का खून निकलता देखकर अन्तराय करना रुधिर अन्तराय है। ___अपने या दूसरों के आँखों में दुःख से अश्रुधारा निकलती हुई देखकर आहार नहीं करना अश्रुपात अन्तराय है।
पैर के नीचे के भाग का स्पर्श करने पर अन्तराय होती है वह जान्वधः परामर्श अन्तराय है।
घुटने प्रमाण काठ के ऊपर उल्लंघन कर नहीं जाते अतः जानूपरि व्यतिक्रम अन्तराय है।
नाभि से नीचा मस्तक कर निकलना वह नाभ्यधोनिर्गमन अन्तराय है।
त्याग को हुई वस्तु खाने में आ जाने पर आहार का त्याग करना प्रत्याख्यान सेवना नामक अन्तराय है। किसी जीव का घात करते देख लिया, किसी हिंसक जीव से किसी जीव का वध होने में अन्तराय होतो है। वह जन्तुवध अन्तराय है।
रस, पोप, हड्डी, मांस, रक्त, चमड़ा आदि के देखने पर अन्तराय है।