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अंगपण्णत्ति ४-अरुचि या अमनोज्ञ आहार मिलने पर अरुचि से आहार करना धूम दोष है। __इन छयालीस दोषों से भी महान् दोष है अधःकर्म । वह जीवों के आरम्भ ( प्राणियों के प्राणों का व्यपरोपण करना ) उपद्रव,' संतापन,' विदावण' आदि करके महान् दोषों से दूषित अधःकर्म कहलाता है । इस अधःकर्म दोष को मन, वचन, काय, कृत, कारित, अनुमोदना से करके आहार लेना अधःकर्म दोष दूषित आहार है। ___ इन ४७ दोषों को टालकर शुद्ध आहार लेने वाले के भी अन्तभुक्ति ( आहार ) में अन्तराय ( बाधा ) करने वाली अन्तरायें कितनी होती हैं, उनका वर्णन करते हैं। __ अन्तराय बत्तीस होती हैं । उसमें कितनी अन्तरायें देखने से होती हैं, कितने ही स्पर्श करने से होती हैं, कितने ही मन में स्मरण कर लेने मात्र से होती हैं, कितने ही शब्द सुनने से ही होती हैं, कितने ही संघने से होतो हैं और कितने ही चखने अथवा स्वाद लेने से भक्षण कर लेने पर होती हैं। ___ गीला चमड़ा, गीली हड्डी, मदिरा, मांस, लहू ( खून ), पीव, मल ( टट्टी ), मृतक, पंचेन्द्रिय प्राणी, चण्डाल आदि के देखने पर अन्तराय होती हैं । अर्थात् इन पदार्थों को देखकर आहार छोड़ दिया जाता है। ___ रजस्वला स्त्री, सूखा चमड़ा, सूखी हड्डी, कुत्ता, बिल्ली, चण्डाल आदि का स्पर्श हो जाने पर अन्तराय होती है।
इसका मस्तक काटो, हा हा इत्यादि रूप आर्त स्वर वाले शब्द को, चण्डाल के शब्द, रजस्वला स्त्री के शब्द, सुअर के शब्द, मोह से उत्पन्न रुदन के शब्द अथवा दीनता, शोक, संताप के शब्द सुनकर आहार छोड़ दिया जाता है । यह सुनने में होने वाली अन्तराय है ।
जिस वस्तु का त्याग कर दिया उस वस्तु के खाने में आ जाने पर अथवा किसी पदार्थ का त्याग किया था स्मरण नहीं रहा, थोड़ा खाने के बाद स्मरण आया हो, हाथ में अथवा मुख में भरा हुआ जन्तु, नख, रोम ( केश ) हड्डी के आ जाने पर भोजन का परित्याग कर दिया जाता है।
१. प्राणियों का उपद्रवण करना उपद्रव है । २. प्राणियों को परितापन करना संताप है । ३. प्राणियों का छेदन-भेदन करना विदावण कहलाता है ।