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तृतीय अधिकार
२१३ ९-क्रीत दोष-संयमी के भिक्षार्थ प्रवेश करने पर गाय, वस्त्र, भोजन आदि लेकर बदले में भोजन लेकर साधु को देना क्रीत दोष है ।
१०-प्राभृष्य दोष-संयमी जनों को आहार कराने के लिए दूसरों से उधार भात आदि भोजन सामग्री लेकर देना प्राभृष्य दोष है।
११-परिवर्तन दोष-साधुओं को आहार कराने के लिए अपने चावल आदि देकर दूसरों से बढ़िया चावल आदि लेकर साधु को आहार देना वह परिवर्तन दोष है।
१२-अभिघट दोष-पंक्तिबद्ध सीधे तीन या सात घरों से आया हुआ योग्य भोजन आभिन्न है अर्थात् ग्रहण करने योग्य है इसके विपरीत आहार अभिघट दोष से युक्त है। सर्वाभिघट दोष के चार भेद हैं। स्वग्राम, परग्राम, स्वदेश और परदेश से लाया हुआ पूर्व दिशा अथवा पश्चिम दिशा आदि से लाया हुआ आहार साधु को देना सर्वाभिघट दोष है।
१३-उद्भिन्न दोष-मिट्टी, लाख आदि से आच्छादित घट आदि को खोलकर साधु को आहार देना उद्भिन्न दोष है । ___१४-मालारोहण दोष-काष्ठ आदि की बनी हुई सोपान पर चढ़कर, घर के ऊपर के खन पर चढ़कर वहाँ रखे हुए लड्डू-पूरी आदि लाकर साधु के लिए देना मालारोहण दोष है।
१५-अच्छेद्य-राजभय, चौरभय आदि से जो साधु को आहार दिया जाता है वह अच्छेद्य दोष है।
१६-अनिसृष्ट दोष-स्वामी को अनिच्छा से दिया गया अन्न अनिसृष्ट दोष से दूषित है।
ये १६ उद्गम दोष गृहस्थ के आश्रित हैं क्योंकि आहार गृहस्थ बनाता है । दोष ज्ञात होने पर साधु आहार ग्रहण नहीं करते।
उत्पादन दोष के भी १६ भेद हैं
१-धात्री दोष-बालक को स्नान कराने वाली, पालन-पोषण करने वाली धात्री कहलाती है । उस धात्री का उपदेश वा धात्री के समान बालक को अपने पास बिठाकर भोजन करवाना आदि कार्य करके आहार ग्रहण करना धात्री दोष है।
२-दूत दोष-एक ग्राम से दूसरे ग्राम में जाने पर किसी सम्बन्धी के समाचार कहकर आहार लेना दूत दोष है।