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द्वितीय अधिकार
१७७ किसी एक संख्या का चार से जितनी बार विभाजित किया जाता है उसे उस संख्या के चतुर्थच्छेद होते हैं । ____ इस प्रकार लघुरिक्थ का आधारहीन या अधिक कितना भी रखा जा सकता है । जैनागम में दो राशि के आधार वाले लघुरिक्थ का ही विशेष प्रयोग किया जाता है क्योंकि त्रिलोकसार आदि ग्रन्थों में अर्द्धच्छेद का वर्गशलाका का ही विशेष निर्देश मिलता है। इसका विशेष वर्णन उन्हीं ग्रन्थों में जानना चाहिए।
इस प्रकार जैनागम में त्रैराशिक गणित श्रेणी, व्यवहार गणित संकलन, व्यवहार श्रेणी, गुणहानिरूपश्रेणी, गुणन व्यवहारश्रेणी का प्रयोग पाया जाता है । इन सबका लक्षण आदि विस्तार भय से नहीं लिखा जाता है।
इस गणित के आधार पर क्षेत्रफल = लम्बाई x चौड़ाई। परिधि = लम्बाई + चौड़ाई।
घनफल = लम्बाई x चौड़ाई x ऊँचाई।
वृत्त सम्बन्धी, बादर परिधि, सूक्ष्म परिधि, बादर-सूक्ष्म क्षेत्रफल, वृत्तविष्कंभ, विष्कंभ का व्यास आदि क्षेत्र गणित के द्वारा निकाला जाता है।
इस प्रकार अनेक प्रकार के गणित का वर्णन त्रिलोकबिन्दुसार पूर्व में कहा गया है।
इस ग्रन्थ की गाथा में आठ प्रकार का व्यवहार, छत्तीस प्रकार के गणित परिकर्म का खुलासा नहीं हो रहा है।
सम्पूर्ण कर्मों का नाश हो जाने पर जो लोक के अग्रभाग में स्थित होते हैं, जो सम्यक्त्व आदि आठ गुणों से युक्त होते है, वे सिद्ध कहलाते हैं। ___ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये मोक्ष प्राप्ति के कारण हैं।
श्रावक के व्रतों का तथा मुनिधर्म का पालन आदि शुभ भाव रूप धर्मक्रिया है।
इन सबका कथन त्रिलोकबिन्दुसार में पाया जाता है। लोक के अवयव को बिन्दु कहते हैं अतः लोक के अवयव लोकबिन्दु कहलाते हैं। जिस ग्रन्थ में लोकबिन्दु के सार का कथन किया गया है वह लोकबिन्दुसार है।
लोक-धातु प्रकाश तथा दर्शन अर्थ में आता है अतः देखा जाता है वह लोक है अर्थात् जिसमें जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल
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