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अंगपण्णत्ति और सोलह का वर्ग दो सौ छप्पन । यह दो सौ छप्पन दो संख्या का वर्गित सर्वागति है दो सौ छप्पन ।
अंश और हाट का संकलन, व्यकलन आठ प्रकार होते हैं उसे भिन्न परिकष्टि कहते हैं। भिन्न परिकाष्ट में जैसे छह का पाँचवाँ भाग छह का अंश वा लव कहलाता है, और पाँच हाट, हट वा छेद कहलाता है। इनमें भिन्न, संकलन, व्यकलन के अर्थ भाग जाति, प्रभाग जाति, भागानुबन्ध और भागापवाह ये चार जातियाँ होती हैं । इसी प्रक्रिया में समच्छेद आदि किये जाते हैं । इसमें सर्व राशियों के हाटों को समान करना समच्छेद कहलाता है, संकलन करना, परस्पर अंशों को जोड़ना संकलन कहलाता है। मूल राशि के अंशों में से ऋण राशि के अंश घटा देना व्यकलन कहलाता है । इनका विशेष वर्णन गणित शास्त्र से जानना चाहिए।
शून्य परिकर्माष्टक की क्रिया भी इसी प्रकार है । शून्य का अर्थ बिंदी है, इसमें भी संकलन आदि आठ बातें होती हैं। जैसे
संकलन = अंक = अंक व्यकलन = अंक-0 अंक गुणाकार - अंक ४० = अंक भागाकार = अंक = 0 वर्ग०२ = वर्गमूल = ० = घन = 03 = 0 घनमूल = ० ०
.. "यह शून्य परिकर्माष्टक क्रिया है। विशेष गोम्मटसार जीवकाण्ड से जानना चाहिए।
अर्द्धच्छेद या लघुरिक्थ गणित भी है।
किसी भी राशि को आधे-आधे करने पर एक रह जाय वह अर्द्धच्छेद कहलाता है। जैसे बीस के अर्द्धच्छेद दश-पाँच आदि । ___ अपनी वर्गशलाका प्रमाण दो का अंक लिखकर परस्पर गुणा करने पर अर्द्धच्छेद का प्रमाण निकल जाता है।
राशि के जितने अर्द्धच्छेद होते हैं उन अर्द्धच्छेद के जितने अर्द्धच्छेद हैं उतनी उनकी राशि की वर्गशलाका जाननी चाहिए।
किसी एक संख्या को जितनी बार तीन से विभाजित किया जाता है, उतने उस संख्या के त्रिच्छेदक होते हैं।
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