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द्वितीय अधिकार
१७५ जिस राशि में जोड़ा जाता है उसे मूल राशि कहते हैं । और जोड़ने योग्य राशि का नाम धन है जैसे दश में पाँच जोड़ने से पन्द्रह होते हैं।
किसी राशि में से किसी राशि को घटाना व्यकलन है जिस राशि में से घटाया जाता है उसे मूल राशि कहते हैं और घटाने योग्य राशि को ऋण कहते हैं । जैसे बीस में से पाँच घटाने पर पन्द्रह रहते हैं । इसमें मूल राशि बीस है और ऋण राशि पाँच है।
किसी प्रमाण को ( राशि को) किसी प्रमाण से गुणा करना गुणाकार कहलाता है। जिस राशि को गणित किया जाता है वह राशि गुण्य कहलाती है और जिस राशि के द्वारा किया जाता है वह गुणाकार का गुणक कहलाती है। ६४५ = ३० । इसमें छह राशि गुण्य और पाँच गुणक है।
किसी राशि का किसी राशि के द्वारा भाजित वा टुकड़े किये जाते हैं वह भागाहार कहलाता है । जिस राशि में भाग दिया जाता है वह जिस राशि के टुकड़े ( अंश ) किये जाते हैं वह राशि भाज्य या हार्य कहलाती है और जिस राशि के द्वारा भाग दिया जाता है वह राशि भागहार हार वा भाजक कहलाती है।
किसी राशि को दो स्थान पर रखकर परस्पर गुणा किया जाता है और उससे जो राशि उत्पन्न होती है उसे वर्ग कहते हैं । जिस राशि का गुणा किया जाता है वह वर्गमूल कहलाता है। जैसे-१६४ १६ = २५६ होता है। दो सौ छप्पन सोलह का वर्ग है। सोलह वर्ग मूल है । इस वर्ग की भी द्वितीय वर्ग धारा, तृतीय वर्ग धारा अनेक प्रक्रिया चलती हैं जैसे दो का वर्ग चार, यह प्रथम वर्ग धारा है, चार का वर्ग सोलह ये द्वितीय वर्ग धारा है, सोलह का वर्ग दो सौ छप्पन, यह तृतीय वर्ग धारा है । इस प्रकार आगे करते जाना चाहिए ।
किसी राशि को तीन स्थान पर स्थापित करके परस्पर गुणा किया जाता है उससे जो राशि उत्पन्न होती है, वह घन कहलाती है जैसे तीन अंक का घन सत्ताईस होता है। जिस राशि से गुणा किया है वह राशि घनमूल कहलाती है जैसे सत्ताईस का घनमूल तीन है। इसके भी द्विघन धारा, तीन घन धारा आदि अनेक भेद हैं।
धवला की तीसरी पुस्तक में एक वर्गित सर्वागति संख्या का भी कथन है वर्ग को वर्ग से गुणा करना। जैसे-दो का वर्ग चार, चार का सोलह