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अंगपण्णत्त
१८५ सैकण्ड । सात स्तोक का एक लव होता है अर्थात्
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स्तोक अथवा ५
११.
३७ सैकण्ड होता है । अड़तीस लव की चौबीस मिनट या नाली
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( घड़ी) होती है । दो नाली ( घटिका ) की अड़तालीस मिनट अर्थात् एक मुहूर्त है । एक हजार पाँच सौ निमेष या तीन हजार तीन सौ तेहत्तर श्वासोच्छ्वास का एक मुहूर्त है । एक समय कम मुहूर्त को भिन्न मुहूर्त वा अन्तर्मुहूर्त कहते हैं। तीस मुहूर्त या चौबीस घंटे का अहोरात्र होती है । पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष होता है । दो पक्ष का एक महीना होता है । दो महीनों की एक ऋतु होती है। तीन ऋतु का एक अयन और दो अयन का एक संवत्सर होता है । पाँच वर्ष का युग, दो युग का वर्ष दशक तथा वर्ष सहस्र, दश सहस्र एक लाख, वर्ष चौरासी लाख वर्ष का एक पूर्वांग, चौरासी लाख पूर्वांग का एक पर्व, चौरासी लाख पूर्व का एक नियुतांग, चौरासी लाख नियुतांग का एक नियुत, चौरासी लाख नियुत का एक कुमुदांग, चौरासी लाख कुमुदांग का एक कुमुद, चौरासी लाख कुमुद का एक पद्मांग, चौरासी लाख पद्मांग का एक पद्म, चौरासी लाख पद्म का एक नलिनांग होता है। इसी प्रकार नलिन, कमलांग, कमल, त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग, अटट, अमभांग, अमम, हाहांग, हां हां, हू हू, अंग हू हू, लतांग लता, महा लतांग, महालता, श्रीकल्प, हस्त प्रहेलित और अचलात्म इसके आगे पल्य, सागर आदि प्रमाण होता है । ये गणित के चार बीज हैं अर्थात् इन वार के आधार पर गणित का प्रारम्भ होता है ।
अथवा लौकिक गणित की चार मूलभूत क्रियायें हैं— जोड़ना, घटाना, गुणा और भाग । यही चार बीज कहलाते हैं ।
गणित विषयक प्रक्रियाएँ तथा परिकर्माष्ट गणित का निर्देश इस प्रकार किया है ।
अंकानां वामतो गतिः - अंकाश अनुक्रम ( गणना ) बाईं तरफ से होती है जैसे २११२ इनका लिखना, बोलना तो सीधे तरफ से होता है परन्तु अक्षरों में व्यक्त करने से उपरोक्त प्रकार पहले ईकाई फिर दहाई रूप से इससे उलटा क्रम ग्रहण किया जाता है ।
गणित के परिक्रम आठ प्रकार के हैं- संकलन, व्यकलन, गुणाकार, भागाहार, वर्ग, वर्गमूल, धन और घनमूल ।
किसी प्रमाण ( राशि ) को किसी राशि में जोड़ने को संकलन कहते हैं ।