________________
द्वितीय अधिकार
१७३ क्षेत्र के प्रमाणों का निर्देश-द्रव्य का अविभागी (जिसका दूसरा टुकड़ा नहीं होता ) अंश परमाणु कहलाता है।
अनन्तानन्त परमाणु का अवसन्नासन्न । आठ अवसन्नासन्न का एक सन्नासन । आठ सन्नासन का एक त्रुटरेणु ( व्यवहाराणु) आठ त्रुटरेणु का एक त्रसरेणु ( त्रस जीव के पाँव से उड़नेवाला अणु ) आठ त्रस रेणु का एक रथरेणु ( रथ से उड़ने वाली धूल का अणु) आठ रथरेणु का एक उत्तम भोगभूमिस्थ जीवों का बालाग्र ।
आठ उत्तम भोगभूमि जीवों के बालाणुमाण एक मध्यम भूमिज मनुष्यों को बालाग्र।
आठ जघन्य भोगभूमियों जीवों के बालान का एक कर्मभूमियों का बालान।
आठ कर्मभूमियों के बालाग्र का एक लिक्षा ( लीख ) होती है । आठ लीख की एक जू होती है। आठ जू की एक यव होती है।
आठ जौ का एक उत्सेधा अंगुल है। पांच सौ उत्सेधागुंल का एक प्रमाणांगुल होता है । अथवा भरत, ऐरावत के क्षेत्र के चक्रवर्ती का अंगुल प्रमाणांगुल कहलाता है । जिस क्षेत्र वा काल में मनुष्यों का जैसा अंगुल होता है वह आत्मा अंगुल कहलाता है।
छह अंगुल का एक पाद होता है, दो पाद का एक वितास्तिक और दो विसास्तिका एक हाथ होता है। दो हाथ का एक किष्कु । दो किष्कु का एक दण्ड होता है । दण्ड, धनुष, युग, मूसल, नाडी, नाली ये एकार्थ
वाची हैं।
दो हजार धनुष का एक कोश है। चार कोश का एक योजन है । उत्सेधांगुल से, उत्सेधायोजन और प्रमाणांगुल से प्रमाणायोजन का निर्माण होता है। अतः पाँच सौ मानव योजन का एक प्रमाणा ( महा ) योजन होता है। इसी प्रकार सूच्यंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल, जगत श्रेणी, जगत्प्रतर, घनलोक, रजू आदि का प्रमाण क्षेत्र गणित है।
काल गणित का निर्देश :-एक शुद्ध परमाणु मन्दगति से एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश पर जाता है उसमें जो कील लगता है वह समय कहलाता है । असंख्यात समय की एक आवली होती है । असंख्यात आवली का एक उच्छ्वास होता है या सैकण्ड होता है । सात उच्छ्वास का एक
३७७२