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अंगपण्णत्ति
लोयस्स विंदवयवा वणिज्जते च एत्थ सारं च । तं लोविंदुसारं चोद्दसपुव्वं णमंसामि ॥११६।।
लोकस्य विन्दवोऽवयवा वयंते यत्र सारं च ।
तल्लोकविन्दुसारं चतुर्दशपूर्वं नमामि ॥ पयाणि १२५००००००
तिलोविंदुसारं गद-त्रिलोकविन्दुसारं गतं । जिसमें बारह करोड़, पचास लाख पद हैं तथा तीन लोक छत्तीस गुणीत परिकर्म, आठ प्रकार का व्यवहार, अंक विपासादी चार, बीज मोक्ष का स्वरूप का, मोक्षगमन में कारणभूत शुभ धार्मिक क्रियायें, लोक के अवयव और लोक के सार का वर्णन किया जाता है वह चौदहवाँ लोकबिंदुसार नामक पूर्व है उसको मैं नमस्कार करता हूँ ॥११४-११५-११६।।
विशेषार्थ ___ अंक (संख्या) तौल (माप) क्षेत्र और काल ये अंक (संख्यादि) चार लोक (गणित) के बीज हैं।
एक, दश, सौ, हजार, दश हजार, लाख, दश लाख, करोड़, दश करोड़, नहुत, निन्नहुत, अखोमिनी बिन्दु, अब्बुद, निरब्बुद, अहह, अमभ, अटट, सोगन्धिक, उप्पल, कुमुद, पुण्डरीक, पदम, कथात, महाकथात, असंख्येय, पण्णट्टी (पैंसठ हजार पाँच सौ छत्तीस) बादाल (पण्णहीका वर्ग) एकट्ठी (बादाल का वर्ग) संख्यात, असंख्यात, अनन्त । जघन्य संख्यात, जघन्यपरीता संख्यात, उत्कृष्ट संख्यात ये संख्यात के तीन भेद हैं। इस प्रकार असंख्यात के और उत्कृष्ट के भी तीन भेद हैं। इस प्रकार संख्या गणित के अनेक भेद हैं। यह संख्या गणित (अंक गणित) है।
तौल की अपेक्षा गणित का द्रव्य प्रमाण
सर्षपफल, धान्यभाषफल, गुञ्जाफल, महा अधिक लणफल का एक श्वेत सर्ष फल, सोलह सर्षप का एक धान्यभाषफल, दो धान्य भाष का एक गूंजा फल। दो गूंजाफल का एक रुप्यमासफल, तेरह रुप्य मास का एक धरण। ढाई धरण का एक सुवर्ण या कंस । चार सुवर्ण का एक पल, सौ पल का एक तुला या अर्ध कंस होता है। तीन तुला का एक कुडुब या चार कुडुब का एक प्रस्थ (सेर) होता है। चार प्रस्थ की एक आठक होता है। चार आठक का एक द्रोण, सोलह द्रोण की एक खारी और बोस खारी का एक वाह होता है इस प्रकार मान द्रव्य गणित अनेक प्रकार का है।