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द्वितीय अधिकार
१७१ नौ बार णमोकार मंत्र का जाप करके सिद्धभक्ति पढ़ना चाहिए।
अथ लोचप्रतिष्ठापनक्रियायांपूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थं, भावपूजा-वंदना-स्तव-समेतं श्री लघु योगिभक्ति कायोत्सर्ग यह ऐसा कहकर
नौ बार णमोकार मंत्र का जाप करके योगिभक्ति पढ़ना चाहिए तथा लघुसिद्ध और लघुयोगिभक्ति पढ़कर लघु सिद्धभक्ति पढ़ना चाहिए । __इस प्रकार क्रियाविशाल में नित्य-नैमित्त क्रियाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन है।
मुनिजनों की लौकिक (आहार, विहार, निहार आदि) क्रिया और षट् आवश्यक आदि अलौकिक क्रियाओं का कथन किया जाता है।
इस प्रकार नृत्यादि क्रियाओं से विशाल विस्तीर्ण ग्रन्थ को क्रियाविशाल कहते हैं।
इसमें स्वभाव से संगीत, शास्त्र, छन्द, अलंकार आदि पुरुषों की बहत्तर कलाओं का, स्त्री सम्बन्धी चौसठ गुणों का, शिल्पी आदि चौरासी विज्ञानों का, गर्भाधानादि एक सौ आठ क्रियाओं का, सम्यक्त्ववर्धिनि पच्चीस क्रियाओं का, साधुओं के द्वारा प्रतिदिन करने योग्य त्रिकाल वन्दना, वन्दना की विधि, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, प्रत्याख्यान आदि क्रियाओं का और वर्षायोग, नन्दीश्वरकाल, पाक्षिक, चातुर्मासिक, उत्तमार्थ प्रतिक्रमण, चतुर्दशी, अष्टमी के दिनों की करने योग्य क्रियाओं का, लौकिक, लोकोत्तर आचार-विचार आदि का कथन किया जाता है। क्रियाविशाल पूर्व दशवस्तुगत दो सौ प्राभृत और नौ करोड़ पद हैं।
॥ इस प्रकार क्रियाविशालपूर्व समाप्त हुआ ॥
त्रिलोकविन्दुसार का कथन तिल्लोविंदसारं कोडीबारह-दसग्धपणलक्खं । जत्थ पयाणि तिलोयं छत्तीसं गुणिदपरियम्मं ॥११४॥ त्रिलोकविन्दुसार कोटयो द्वादश दशघ्नपंचलक्षाणि ।
यत्र पदानि त्रिलोकं षत्रिंशत् गणितपरिकर्म॥ अडववहारात्थि पुणो अंकविपासादि चारि वीजाई । मोक्खसरूवग्गमणकारणसुहधम्मकिरियाओ ॥११५॥
अष्टव्यवहारान् पुनः अंकविपासादोनि चत्वारि बीजानि । मोक्षस्वरूपगमनकारणसुखेधर्मक्रियाः