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द्वितीय अधिकार रागवश प्रमादी का रमणीय रूप के देखने का अभिप्राय दर्शन क्रिया है।
प्रमादवश स्पर्श करने लायक सचेतन पदार्थ का अनुबन्ध स्पर्शन क्रिया है।
नये अधिकरणों को उत्पन्न करना प्रात्ययिकी क्रिया है। ___ स्त्री, पुरुष और पशुओं के जाने, आने, उठने और बैठने के स्थान में भीतरी मल का त्याग करना समन्तानुपात क्रिया है।
प्रमार्जन और अवलोकन नहीं की गयी भूमि पर शरीर आदि का रखना अनाभोग क्रिया है। ___जो क्रिया दूसरों द्वारा करने की हो उसे स्वयं कर लेना स्वहस्त क्रिया है।
पापादान आदि रूप प्रवृत्ति विशेष के लिए सम्पत्ति देना निसर्ग क्रिया है। __दूसरे ने जो सावध कार्य किया हो उसे प्रकाशित करना विदारण क्रिया है। ___ चारित्र मोहनीय के उदय से आवश्यक आदि विषय में शास्त्रोक्त आज्ञा को न पाल सकने के कारण अन्यथा निरूपण करना आज्ञा व्यापादिकी क्रिया है।
धूर्तता और आलस्य के कारण शास्त्र में उपदेशी गयी विधि करने का अनादर करना अनाकांक्षा क्रिया है। __ छेदना, भेदना और रचना आदि क्रिया में स्वयं तत्पर रहना और दूसरे के कहने पर हर्षित होना प्रारम्भ क्रिया है। ___ परिग्रह का नाश हो इसलिए जो क्रिया की जाती है, वह परिग्रहिकी क्रिया है।
ज्ञान, दर्शन आदि के विषय में छल करना माया क्रिया है।
मिथ्यादर्शन के साधनों से युक्त पुरुष की प्रशंसा आदि के द्वारा दृढ़ करना कि 'तू ठीक करता है मिथ्यादर्शन क्रिया है।
संयम का घात करने वाले कर्म के उदय से त्याग रूप परिणामों का न होना अप्रत्याख्यान क्रिया है। इस प्रकार पाँच का वर्ग ( पच्चीस ) सम्यग्दर्शनादि क्रिया है। णिच्चणिमित्ताकिरिया वंदणसम्मादिया मुणिदाणं । लोगिगलोगुत्तरभवकिरिया णेया सहावेण ॥११३॥