________________
१५९
द्वितीय अधिकार "सम्यग्दृष्टे, सम्यग्दृष्टे, सर्वमातः सर्वमातः वसुन्धरे वसुन्धरे'' इस मंत्र से मंत्रित भूमि में जल, अक्षत डालकर पाँच रत्न के नीचे-"त्वत्पुत्रा इवमत्पुत्रा चिरंजीविनो भूयासुः" इस मंत्र का उच्चारण करते हुए जमीन पर नाल के मल को डालना चाहिये ।
"सम्यग्दृष्टे, सम्यग्दृष्टे, आसन्नभव्ये आसन्नभव्ये विश्वेश्वरि विश्वेश्वरि, अजितपुण्ये, अजितपुण्ये, जिनमातः जिनमातः स्वाहा" ऐसा मंत्र बोलकर शिशु की माता को स्नान करावें । ___ जन्म के तीसरे दिन रात्रि के समय "अनन्तज्ञानदी भव" ऐसा मंत्र उच्चारण कर पुत्र को गोद में लेकर पुत्र को नक्षत्र का अवलोकन कराना चाहिये।
७-जन्म से बारह दिन के बाद जो दिन माता-पिता और पुत्र के अनुकूल वा सुखदायक हो उस दिन नामक्रिया की जाती है । ___ नामक्रिया की विधि में सर्व प्रथम अपने वैभव के अनुसार अर्हन्तदेव
और ऋषियों की पूजा करके यथायोग्य दान देना चाहिये तथा सिद्ध भगवान् की पूजा करने के लिए "सत्य जन्मनः शरणं प्रपधामि, अहज्जन्मनः शरणं प्रपधामि, अर्हन्मातुशरणं०,अर्हत्सुतस्यशरणं०, अनादिगमनस्यशरणं०, अनुपमजन्मनः शरणं०, रत्नत्रयस्यशरणं०, हे सम्यग्दृष्टे सम्यग्दष्टे, ज्ञानमूर्ते ज्ञानमूर्ते सरस्वती सरस्वती स्वाहा इन मंत्रों का उच्चारण करना चाहिये। तदनन्तर दिव्याष्ट सहस्रभागी भव, विजयाष्ट सहस्रभागी भव, परमार्थ सहस्रनामभागो भव इन मंत्रों का उच्चारण करना चाहिये तथा जिनेन्द्र देव के एक हजार आठ नामों के समूह से घटपत्रविधि करके कोई एक शुभ नाम रखना चाहिये। संक्षेप में घटपत्र विधि का अर्थ है 'एक हजार आठ नाम लिखकर एक घड़े में भरना तथा अबोध बालक से उसमें से एक कागज निकलवाना जो नाम लिखा निकले वही नाम रखना चाहिए, सातवीं नामकर्म क्रिया है।
८-दो, तीन या चार महीने के बाद किसी शुभ में वादित्र के साथ शिश को 'उपनय निष्क्रांति भागी भव, वैवाह०, मुनीन्द्र०, सुरेन्द्र०, मन्दराभिषेक०, यौवन राज्य०, महाराज्य०, परमराज्य०, आर्हन्त्य०, इन मंत्रों के उच्चारण के साथ प्रसूति को घर से बाहर निकालना बहिर्यान क्रिया है।
९-शुभ बेला में शिशु को, सिद्ध भगवान की पूजा करके "दिव्य सिंहासन भागी भव, विजय सिंहासन भागी भव, परम सिंहासनभागी भव" इन मंत्रों का उच्चारण करके दिव्य आसन पर बिठाना निषधा क्रिया है।