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अंगपण्णत्ति पूजा करके "सज्जाति दातृभागी भव, सदगृहिदातृभागी भव, मुनीन्द्र दातृभागी भव, परम निर्वाणभागी भव" इन मंत्रों का उच्चारण करके गर्भ का संस्कार करना धृति क्रिया है।
५-गर्भाधान के नौवें महीने गर्भ की पुष्टि के लिए जिनेन्द्र भगवान् का पूजन करके गर्भिणी के शरीर पर “सज्जाति कल्याणभागी भव, सदगृहि कल्याणभागी भव, वैवाह कल्याणभागी भव, मुनीन्द्र कल्याणभागी भव, सुरेन्द्र कल्याणभागी भव, मन्दराभिषेक कल्याणभागी भव, यौवराज्य कल्याणभागी भव, महाराज्य कल्याणभागी भव, परमराज्य कल्याणभागी भव, आहत्य कल्याणभागी भव, इन मंत्रों का उच्चारणपूर्वक बीजाक्षर लिखकर मंगलमय आभूषण पहनाकर गर्भ की रक्षा के लिये कंकणसूत्र आदि बाँधने की विधि करना पाँचवीं मोद क्रिया है।
६-तदनन्तर प्रसूति होने पर प्रियोद्भव क्रिया की जाती है इसका दूसरा नाम कर्मविधि भी है। यह क्रिया जिनेन्द्र भगवान् का स्मरण कर विधिपूर्वक की जाती है। सर्व प्रथम-"दिव्यनेमि विजयाय स्वाहा, परमनेमि विजयाय स्वाहा, आर्हन्त्यनेमि विजयाय स्वाहा इन मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए । सिद्ध भगवान् के गन्धोदक के सिंचन किए हुए बालक के शिर का स्पर्श करते हुए ऐसा कहना चाहिए कि तेरी माता, कुल, जाति से शुद्ध रूपवती, शीलवती, सन्तानवती, भाग्यवती, अवैधव्य से युक्त सौम्यशान्ति मूर्ति और सम्यग्दष्टि है, अतः हे पुत्र तूं "दिव्यचक्रभागी भव, विजयचक्रभागी भव, परमचक्रभागी भव'' इस प्रकार मन्त्र बोलकर पिता पुत्र को आशीर्वाद देता है।
हे पुत्र तू शतायु भव, तदनन्तर दूध और घृत नाभि पर डालकर 'घातिजयो भव' इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए नाभि का नाल काटना चाहिए। __ हे जात, श्री देव्यः ते जातिक्रियां कुर्वन्तु" इस मंत्र को बोलकर शिशु के शरीर पर सुगन्धित द्रव्य से उबटन करें। ___"पुत्र त्वं मन्दराभिषेकभागी भव" इस मंत्र को बोलकर बालक को स्नान करावें ।
'हे पूत्र त्वं चिरं जीयात्' ऐसा बोलकर शिश पर अक्षत डाले । हे द्विज ते कृत्स्नं कर्ममलं नश्यात्' इस मन्त्र को बोलकर जात बालक के मुख और नाक में औषधि मिलाकर तैयार किया हुआ घृत डाले। __ "विश्वेश्वरी स्तन्यभागी भूयाः" इस मंत्र को बोलकर बालक को स्तनपान करावें । तदनन्तर प्रीतिपूर्वक दान देवें।