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द्वितीय अधिकार
१५७ "मोक्षे धीनिं" शिल्पशास्त्रयोर्धी विज्ञानं' मोक्षमार्ग में बुद्धि का प्रवेश होता है वह धी ज्ञान कहलाता है । और शिल्पीशास्त्र में जो बुद्धि का प्रवेश होता है वह विज्ञान कहलाता है। उस विज्ञान के चौरासी भेद हैं।
काष्टभेदनी, वृक्षादनी, वृक्षभेदी, टंकः, पाषाणदारणी आदि चौरासी प्रकार से शिल्पी शास्त्र का विज्ञान है। शिल्पी क्रिया कहते हैं। बर्तन बनाना, शस्त्र बनाना, वस्त्र बनाना, लोहा, सोना आदि धातु की प्रतिमा बनाना आदि अनेक प्रकार का विज्ञान है । अथवा अनेक प्रकार के मकान बनाना भी शिल्पी शास्त्र है।
इस शिल्पी विज्ञान के चौरासी भेद हैं-उनका विस्तार कथन अन्य ग्रन्थों से जानना चाहिए। ___ गर्भाधान आदि १०८ क्रियाओं का नाम एवं स्वरूप इस प्रकार हैं-- गर्भान्वय क्रिया तिरेपन, दीक्षान्वय क्रिया अड़तालीस और कन्वय क्रिया सात इस प्रकार गर्भाधानादि क्रिया एक सौ आठ हैं।
१-गर्भान्वय क्रिया-चतुर्थ स्नान के द्वारा शुद्ध हुई पुष्पवती पत्नी को आगे करके गर्भाधान के पूर्व अर्हन्तदेव की पूजा, हवन कर विधिपूर्व सज्जाति भागी भव, सद्गृह भागी भव, मुनीन्द्र भागी भव, सुरेन्द्र भागी भव, परमराज्य भागी भव, आर्हत्य भागी भव, परम निर्वाण भागी भव इत्यादि मंत्रपूर्वक जो संस्कार किया जाता है उसे गर्भाधान क्रिया कहते हैं।
२-गर्भाधान के तीसरे महीने में घर द्वार पर कलश स्थापन कर बड़े उत्सव के साथ वीतराग प्रभु के पूजन करके त्रैलोक्यनाथो भव, त्रैकाल्य ज्ञानी भव, त्रिरत्न स्वामी भव, इन मंत्रों का उच्चारण करके गर्भवती के उदर का संस्कार करना प्रीतिक्रिया है।
३-गर्भाधान के पांचवें महीने में मंत्र और क्रियाओं को जानने वाले श्रावक अग्नि की साक्षीपूर्वक अर्हन्त भगवान् की प्रतिमा के सन्मुख "अवतार कल्याणभागी भव, मन्दरेन्द्राभिषेक कल्याणभागी भव, निष्क्रान्ति कल्याणभागी भव, आर्हन्त्य कल्याणभागी भव, परमनिर्वाण कल्याणभागी भव, इन मंत्रों का उच्चारण करके गर्भवती के गर्भ का संस्कार करना सुप्रीति क्रिया है।
४-गर्भाधान के सातवें महीने जिनमन्दिर में जाकर वीतराग प्रभु की
१. अमरकोष पृ० ५७ श्लोक ।