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अंगपण्णत्ति अथवा छेद का अर्थ गणितशास्त्र है। इसके अनेक भेद हैं। इसका संक्षेप से त्रिलोकविन्दुसार पूर्व में किया जायेगा। अर्थ अलंकार और शब्द अलंकार के भेद से अलंकार दो प्रकार का है जिसमें एक शब्द के अनेक अर्थ किये जाते हैं अर्थ अलंकार है श्लेष, प्रसाद, समता, माधुर्य, सुकुमारता, अर्थव्यप्ति, उदारत्व, ओज, कान्ति, समाधि से अलंकार के प्राण उपमा अलंकार अर्थालंकार विरोधाभास अलंकार आदि अलंकार के अनेक भेद हैं। इस प्रकार आलेख्य, गणित, संगीत शास्त्र आदि बहत्तर पुरुषों की कला या क्रिया कहलाती हैं।
नाट्यकला, संगीतकला, चित्रकला (जिसमें चन्दनादि द्रव्य का कृत्रिम-अकृत्रिम रंग के द्वारा वस्त्रादि के ऊपर चित्राम बनाये जाते हैं) पुस्तकर्मकला ( मिट्टी के खिलौने यंत्र चालन आदि अनेक क्रिया है) पत्रच्छेदकला मालाकर्म क्रिया ( शुष्क आर्द्र पुष्पों के द्वारा अनेक-अनेक प्रकार की माला बनाना। माल्पकर्मकला रण ( युद्ध ) में चक्रव्यूह आदि की रचना करना ) योनिद्रव्यकला ( अनेक प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों का मिश्रण करके वस्तुओं का निर्माण करना ) भक्ष्य, भोज्य, पेय, लेह्य और चुस्य के भेद से भोजन सम्बन्धित पाँच भेद हैं। उन अनेक प्रकार के भोजन के निर्माण की विधि भोजन कला या आस्वाद्य विज्ञान कला है । धातुकला ( हीरा, सुवर्ण, मोती आदि का परिज्ञान ) वस्त्रकला ( वस्त्रों पर बेल-बूटा आदि निकालना ) संवाहन कला-पैर आदि को दबाना इसका दूसरा नाम शय्योपचार क्रिया है। भूतिकला-बेलबूटा खींचना, निधिज्ञान-भूमिस्थ धन का ज्ञान, रूप विज्ञानकला, वाणिज्य विधि-व्यापार कला, जीव विज्ञान-जीवों की उत्पत्ति आदि का विज्ञान, चिकित्सा का निदान क्रिया, मायाकृत, पीड़ाकृत, इन्द्रजाल मंत्र-तंत्र कृत और औषधिकृत मूर्छा के परिहार करने की क्रिया, क्रीड़ा आदि स्त्रियों की चौसठ क्रिया कला हैं।
"कला गीतनृत्यादिरूपा, चतुषष्टि भेदभिन्ना (आदिन ) सुवर्णकारादिक्रम ग्रहः।" गीत नृत्यादि, चौसठ कला होती हैं।
१. LOGARITHM (ज० ५०प्र० १०६) २. गीले पुष्पों को जो माला बनाई जाती है वह आर्द्र है। सूखे पत्र आदि से
बनाई जाती है वह शुष्क है, चावलों के साथ वा 'जौ' आदि से बनाई जाती है वह उज्झित है और पुष्प पत्र और जो इन तीनों को मिलाकर बनाई जाती है, मिश्र कहलाती है ।