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अंगपण्णत्ति उनके उत्पाद स्थान तथा उनको वक्रता आदि से शुभाशुभ का कथन करने वाला कल्याणवादपूर्व है।
कल्याणवाद पूर्व में दश वस्तुगत दो सौ प्राभृत और छब्बीस करोड़ पद हैं।
॥ कल्याणवाद पूर्व समाप्त ॥
प्राणावाद पूर्व का कथन पाणावायं पुव्वं तेरहकोडिपयं णमंसामि । जत्थ वि कायचिकिच्छापमुहटुंगायुवेयं च ॥१०॥
प्राणावायं पूर्व त्रयोदशकोडिपदं नमामि । यत्रापि कायचिकित्साप्रमुखाष्टाङ्ग अयुर्वेदं च ॥ भूदीकम्मंजंगुलिपक्कमाणासाहया परे भेया। ईंडापिंगलादिपाणा पुढयीआउग्गिवायूणं ॥१०८॥
भूतिकर्मजांगुलिप्रकमसाधका परे भेदाः।
इलापिंगलादिप्राणाः पृथिव्यवग्निवायूनां ? ॥ तच्चाणं बहुभेयं दहपाणपरूवणं च दव्वाणि । उवयारयावयारयरूवाणि य तेसिमेवं खु॥१०९॥
तत्त्वानां बहभेदं दशप्राणप्ररूपणं च द्रव्याणि ।
उपकारापकाररूपाणि च तेषामेवं खलु ॥ वणिज्जइ गइभेया जिणवरदेवेहि सव्वभासाहि ।
वय॑ते गतिभेदैः जिनवरदेवैः सर्वभाषाभिः । पयाणि १३०००००००
पाणावायं गदं-प्राणावादं गतं । जिस ग्रन्थ में जिनेन्द्र भगवान् ने सर्व भाषाओं के द्वारा चिकित्सा प्रमुख भूति कर्म, जांगुलि प्रक्रम के साधक अनेक भेद युक्त अष्टांग आयुर्वेद, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु रूप तत्त्वों के अनेक भेद इंगला, पिंगला आदि प्राण, दश प्राणों के स्वरूप का प्ररूपण, प्राणों के उपकारक एवं अपकारक द्रव्य का गति आदि के अनुसार तेरह करोड़ पदों के द्वारा वर्णन किया गया है वह प्राणावाय नामक पूर्व है। उसको मैं नमस्कार करता हूँ॥ १०७-१०८-१०९ ॥