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द्वितीय अधिकार
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के ध्वज दण्ड होते हैं। दिन और वर्ष के भेद से राहु का गमन दो प्रकार का है। इनमें से दिन राह की गति चन्द्र सदश होती है। एक वीथी को लाँघकर दिन राहु और चन्द्र बिम्ब जम्बूद्वीप की आग्नेय और वायव्य दिशा से तदनन्तर वीथी में आते हैं। राहु प्रतिदिन एक-एक पथ में चन्द्रमण्डल के सोलह भागों में एक-एक कला को आच्छादित करता हुआ क्रम से पन्द्रह कला पर्यन्त आच्छादित करता है। इस प्रकार अन्त में जिस मार्ग में चन्द्र की केवल एक कला दिखाई देती है वह अमावस्या दिवस होता है। प्रतिपदा के दिन वह राहु एक-एक वीथी में गमन विशेष से चन्द्रमा की एक-एक कला छोड़ता है अतः जब चन्द्रमा मनुष्य लोक में परिपूर्ण दोखता है, वह पूर्णिमा नाम का दिवस होता है । ___पर्व राहु नियम से गति विशेषों के कारण छह मास में पूर्णिमा के अन्त में पृथक्-पृथक् चन्द्र बिम्बों को आच्छादित करते हैं इससे चन्द्र ग्रहण होता है। ___ केतु अमावस्या के दिन सूर्य बिम्ब को आच्छादित करता है उसको सूर्य ग्रहण कहते हैं।
सूर्य के गमन से ही दिन-रात की हानि-वृद्धि होती है। सूर्य चन्द्रमा संचार से हो अयन ऋतु आदि होते हैं इससे तिथि वृद्धि हानि महीने की वृद्धि होती है। चन्द्र की उत्कृष्ट आयु एक लाख वर्ष अधिक एक पल्य प्रमाण है, सूर्य की एक हजार वर्ष अधिक एक पल्य, शुक्र की सौ वर्ष अधिक एक पल्य, बृहस्पति के पूर्ण पल्य और शेष ग्रहों की उत्कृष्ट आयु आधा पल्य है तथा जघन्य आयु पल्य का आठवाँ भाग प्रमाण है । ज्योतिष देवों की शरीर की ऊँचाई सात धनुष प्रमाण है। आहार-उच्छ्वास अवधिज्ञान का विषय शक्ति एक समय में जीवों को उत्पत्ति मरण आयु के बंध के भाव सम्यग्दर्शन करने को विविध कारण आदि का विशेष वर्णन त्रिलोकसार और तिलोयपण्णत्ति में देखना चाहिये।
जब नक्षत्र की वक्रगति होती है तब उनका फल अशुभ मिलता है। इत्यादि ज्योतिषी देवों के नाम गमन संचार-चार क्षेत्र ग्रहण, उपपाद क्षेत्र, वक्रगति उसका शुभाशुभ फल का कथन कल्याणवादपूर्व में है। __इस प्रकार चतुर्विंशति, तीर्थंकरों के पंच कल्याणकों का कथन तीर्थकर प्रकृति के बंध में कारणभूत षोडश भावनाओं का स्वरूप, चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनारायण, बलभद्र आदि का कथन उनके पुण्य विशेष का कथन करने वाला तथा सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र आदि के संसार क्षेत्र का,