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अंगपण्णत्त
जन्म से तीन लोक में अनुपम आनन्द छा जाता है । देवियाँ माता की सेवा करने में तत्पर रहती हैं । पुत्र के जन्म से माता को थोड़ा-सा भी कष्ट नहीं होता । उस समय नभोमण्डल अत्यन्त स्वच्छ हो जाता है, आकाश से कल्पवृक्ष के सुगन्धित पुष्पों की वर्षा होती है । देवों की दुन्दुभि बाजे बजते हैं। भूमि कम्पित होती है मानो हर्ष से नृत्य ही कर रही हो ।
प्रभु के जन्म समय अकस्मात् भवनवासियों के भवन में शंख-ध्वनि, व्यन्तरों के यहाँ भेरीनाद, ज्योतिषियों के सिंहनाद तथा कल्पवासियों के घर घंटे बजने लगते हैं ।
प्रभु के प्रताप से इन्द्र का आसन कम्पित होता है, जिससे इन्द्र भगवान् का जन्म हुआ ऐसा जानकर सिंहासन में उठकर 'जयतां जिनः ' ऐसा कहकर सात पैड जा हाथ जोड़ भगवान् को परोक्ष रूप से नमस्कार करता है । इन्द्र की आज्ञा से चारों काय के देव सौधर्मइन्द्र की सभा में उपस्थित होते हैं । कुबेर सात प्रकार की सेना सहित अभियोग्य जाति के देव को ऐरावत हाथी बनने का आदेश देता है । विक्रियाशक्ति से सम्पन्न वाहन जाति का देव एक लाख योजन का गजाकार वैक्रियिक शरीर बनाता है । उस गजराज के बत्तीस मुख होते हैं, एक-एक मुख में आठआठ दाँत और प्रत्येक दाँत पर एक-एक सरोवर, प्रत्येक सरोवर में एकएक कमलिनी, एक- एक कमलिनी सम्बन्धी बत्तीस-बत्तीस कमल । प्रत्येक कमल के बत्तीस-बत्तीस पत्र रहते हैं । प्रत्येक पत्र पर ( कमल पर ) देवांगनायें मनोहारी नृत्य करती हैं ।
चतुर्निकाय के देवों का समूह अपने - अपने परिवार के साथ सौधर्मइन्द्र की सभा में पहुँचते हैं। उन सब के साथ सौधर्मेन्द्र ऐरावत हाथी पर आरूढ़ होकर प्रभु के जन्म स्थान पर पहुँचते हैं और सर्व प्रथम इन्द्र नगर की तीन प्रदक्षिणा देकर राजांगण में प्रवेश कर इन्द्राणी को प्रसूति घर में जाकर प्रभु को लाने की आज्ञा देता है ।
सुरराज की आज्ञा से इन्द्राणी प्रसूति घर में आकर प्रभु के दर्शन कर, प्रभु को तोन प्रदक्षिणा देकर भक्तिपूर्वक नमस्कार करती है । प्रभु के दर्शन से इन्द्राणी के नयन चकार पुलकित हो उठते हैं, शरोर रोमांचित हो जाता है तथा हृदय कल्पनातीत आनन्द हिलोरें लेने लगता है ।
माताको स्तुति कर प्रभु को गोदी में लेकर इन्द्राणी बाहर आती है और इन्द्र की गोद में प्रभु को अर्पण करती है । इन्द्र प्रभु को हजार नेत्र