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द्वितीय अधिकार
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षोडशकारण भावना, तपो अनुष्ठान आदि का तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, नारायण, प्रतिनारायण आदि के पुण्य विशेष का तथा सूर्य, चन्द्रमा नक्षत्र और तारागणों के चार क्षेत्र, उपपाद स्थान, गति, वक्रगति, तथा उनके शुभाशुभ फलों का वा जिसमें यह कथन है, कथन करता है वह कल्याणवाद पूर्व है ।। १०४-१०५ ।।
विशेषार्थं
गर्भ कल्याण - तीन लोक के
प्रभु मध्य लोक में जन्म लेने वाले हैं ।। यह जानकर इन्द्र आज्ञा देता है तुम उत्तम नगर की रचना करो और श्री हो आदि देवियों को कहता है तुम मध्यलोक में जाकर तीर्थंकर की जननी की सेवा करो । इन्द्र की आज्ञा से कुवेर नव योजन चौड़ा और बारह योजन लम्बे नगर की रचना करता है तथा गर्भ में आने के षट माह पूर्व ही दिन में चौदह करोड़ करता है ।
रत्नों की वर्षा करना प्रारम्भ
श्री ही आदि आठ मुख्य देवियों के साथ छप्पन कुमार देवियाँ माता की सेवा करती हैं । पिछली रात में माता १६ स्वप्न देखती हैं - गजराज,. श्वेत वृषभ, सिंह, लक्ष्मी का कलशों के द्वारा अभिषेक, दो माला, रवि, शशि, दो मछली, कनकघट, कमलों से व्याप्त सरोवर, कल्लोल मालाओं से युक्त समुद्र, सिंहासन, रमणीक देव विमान, धरणेन्द्र का भवन, रुचिकर रत्नराशि, निर्धूम अग्नि ।
प्रातः काल उठकर शौचादि क्रियाओं से निवृत्त होकर राजा के पास जाकर विनयपूर्वक नमस्कार करके स्वप्नों का फल पूछती है । राजा स्वप्न का फल कहकर रानी को संतुष्ट करता है और कहता है तेरे तीन लोक का नाथ पुत्र उत्पन्न होगा ।
इन्द्र भगवान् को गर्भ में आया जानकर मध्यलोक में आता है और नगर की तीन प्रदक्षिणा देकर माता-पिता को नमस्कार करके उनकी फलफूलों से पूजा करता है तथा उसी समय साढ़े १२ करोड़ वादित्र बने लगते हैं ।
देवांगनाएँ माता से अनेक प्रकार के गूढ़ प्रश्न पूछती हैं तथा माता उत्तर देती हैं । इस प्रकार अनेक प्रकार से देव-देवांगनाएँ गर्भोत्सव मनाती हैं, उसको गर्भ कल्याण कहते हैं ।
जन्म कल्याण - जिस समय प्रभु का जन्म होता है उस समय के आनन्द और शान्ति का वर्णन कौन कर सकता है। तीन जगत् के गुरु के