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अंगपण्यत्ति
स्वर (श्वास) के आगमन एवं निर्गमन के द्वारा इष्टानिष्ट फल का प्रतिवाद करना वा शब्द का श्रवण कर फल का कथन करना स्वर (शब्द) निमित्त है।
मानव के अंग एवं उपांग को देखकर इष्टानिष्ट फल का कथन करना अंग निमित्त है। ___ शरीरस्थ तिल, मशा, शंख आदि व्यंजन कहलाते हैं। उनको देखकर जीवन में होने वाली घटनाओं का प्ररूपण करना व्यंजन निमित्त है।
स्वप्न के द्वारा भावी जीवन की उन्नति और अवनति का प्ररूपण करना स्वप्न निमित्त है। क्योंकि स्वप्न मानव को उसके भावी जीवन में घटने वाली घटनाओं को सूचना देते हैं। स्वप्न का अन्तरंग कारण ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी और अन्तराय का क्षयोपशम तथा मोहनीयकर्म का उदय है।
वस्त्रों के जल जाने, कट जाने आदि से शुभाशुभ का कथन करना छिन्न निमित्त है क्योंकि वस्त्रादि में मानव, देव और राक्षस का स्थान है। राक्षस के स्थान का कटना शुभ है, मनुष्य देव का अशुभ ।
शरीरस्थ, श्रो, वृक्ष, स्वस्तिक, कलश-झारी आदि को देखकर शुभाशुभ का कथन करना लक्षण निमित्त है।
इन बाह्य कारणों के द्वारा घटनेवाली घटनाओं का आभास होता है अतः इनको निमित्त कहते हैं।
॥ विद्यानुवाद पूर्व समाप्त ।।
कल्याणवाद पूर्व का कथन कल्लाणवादपुव्वं छब्बीससुकोडिपयप्पमाणं तु । तित्थहरचक्कवट्टीवलदेउसमद्धचक्कीणं ॥१०४॥
कल्याणवादपूर्व षड्विशतिसुकोटिपदप्रमाणं तु।
तीर्थङ्करचक्रवर्तिबलदेवसमर्द्धचक्रिणां ॥ गब्भावदरणउच्छव तित्थयरादीसु पुण्णहेदू च । सोलहभावणकिरिया तवाणी वण्णेदि (स) विसेसं ॥१०५॥
गर्भावतरोत्सवानि तीर्थंकरादिषु पुण्यहेतूश्च ।
षोडसभावनाक्रियाः तपांसि वर्णयति सविशेषं ॥ जो पूर्व छब्बीस करोड़ पद प्रमाण है तथा जो तीर्थङ्करों के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, मोक्ष रूप पाँच कल्याणों का कल्याणों की कारणभूत