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द्वितीय अधिकार
१३७ सिद्धानां फललाभान् भौमगगनाङ्गशब्दच्छिन्नानि ।
स्वप्नलक्षणव्यंजनानि अष्टौ निमित्तानि यत्कथयति ॥ पयाणि ११००००००।
इदि विज्जाणुवादपुव्वं-इति विद्यानुवादपूर्व । विद्यानुवादपूर्व के इस विद्यानुवाद पूर्व में अंगुष्ठसेनादि सात सौ लघु विद्यारोहिणी आदि पाँच सौ महाविद्या तथा इन विद्याओं का स्वरूप, इनकी शक्ति, इन विद्याओं के सिद्ध करने को पूजा मंत्र आदि का प्रकाशन है। तथा सिद्ध हई विद्याओं का फल, लाभ का कथन भी यह पूर्व करता है और यह पूर्व भौम, अन्तरिक्ष, अंग, शब्द, छिन्न, स्वप्न, लक्षण, व्यंजन इन अष्टांग निमित्त का कथन करता है ।।१०१-१०२-१०३॥
विशेषार्थ विद्यानुवाद पूर्व पन्द्रह वस्तुगत तीन सौ प्राभतों के एक करोड़ दश लाख पदों के द्वारा अंगुष्ठ पेनादि सात सौ अल्पविद्याओं का, रोहिणी आदि पाँच सौ महाविद्याओं का और अन्तरिक्ष,' भौम, अंग, स्वर, स्वप्न, लक्षण, व्यंजन, चिह्न इन आठ महानिमित्तों का वर्णन करता है । अथवा विद्याओं का अनुवाद (अनुक्रम से वर्णन) जिस पूर्व में है वह दशवाँ विद्यानुवाद पूर्व है। इन विद्याओं की सिद्धि किस प्रकार की जाती है, इनका फल क्या है, इनके सिद्ध करने का मंत्र कौनसा है । आदि का कथन इसी पूर्व में है ।
जिस विद्या के द्वारा अंगठे में देवताओं का अवतरण किया जाता है वह अंगुष्ठप्रसेता विद्या कहलाती है। अंगुष्ठसेना आदि सात सौ अल्प विद्याओं का, रोहिणी आदि पाँच सौ महाविद्याओं का तथा अन्तरिक्ष, भौम, स्वर, अंग, व्यंजन, स्वप्न, लक्षण और छिन्न इन आठ महानिमित्तों का जो प्ररूपण करता है, वह विद्यानुवाद पूर्व है। ___ अन्तरिक्ष (गगनतल) में स्थित नक्षत्रों के गमन, उदय, अस्त आदि के द्वारा जो शुभा-शुभ का कथन किया जाता है, वह अन्तरिक्ष निमित्त है।
भूमि को देखकर शुभा-शुभ कथन करना अर्थात् यह पृथ्वी शुभ है वह अशुभ है,"...."यहाँ जल है,..." इसके नीचे रत्न-सोना आदि की खान है आदि करना भौम निमित्त है।
१. षटखण्डागम के सूत्र प्ररूपणा में पृ० १ । अन्तरीक्ष, भौम आदि अष्ट महा
निमित्तों का वर्णन विद्यानुवाद में लिखा है और हरिवंशपुराण सर्ग दश श्लोक ११७ में भौम आदि का वर्णन कल्याणप्रवाद में कहा है ।