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द्वितीय अधिकार
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कर प्रभु का रूप निखरता है तथा सुमेरु पर्वत पर प्रभु को ले जाकर एक हजार कलशों के द्वारा प्रभु का अभिषेक करता है। इन्द्राणी अभिषेक कर श्रृंगार कराती है तथा प्रभु को लाकर माता-पिता को सौंपकर इन्द्र ताण्डव नृत्य करता है और प्रभु को सेवा में देवों को नियुक्त कर स्वर्ग में चला जाता है, इस प्रकार की क्रिया का करना जन्म कल्याण महोत्सव है।
तपकल्याण-कुछ कारण पाकर जब प्रभु संसार से विरक्त होते हैं तब लौकान्तिक देव आकर प्रभु के वैराग्य की अनुमोदना करते हैं । प्रभु को नमस्कार कर स्वर्ग में चले जाते हैं। तब चारों काय के देवों के साथ इन्द्र आकर प्रभु का क्षीरसमुद्र के जल से दोक्षाभिषेक कर सुन्दर वस्त्राभरण से प्रभु को सुसज्जित कर तथा देवरचित पालकी पर बिठाकर वन में ले जाता है। पालकी से नीचे उतर कर सर्व परिग्रह का त्यागकर चन्द्रकान्तिमणि की शिला पर आरूढ़ होकर उपवास धारण कर “ॐ नमः सिद्धेभ्यः" ऐसा उच्चारण कर प्रभु पंचम गति को प्राप्त करने के लिये तथा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव रूप पाँच परिवर्तनों का मूल उच्छेद करने लिए पंचमुष्टि से मोहध्वजा रूप केशों को उखाड़कर फेंक देते हैं । प्रभु के मस्तक पर स्थित होने से पूज्य केशों को इन्द्र, रत्न पिटारे में रखकर भक्तिपूर्वक क्षीरसमुद्र में विसर्जन कर देता है। दो दिन, तीन वा चार आदि दिन बाद प्रभु पारणा के लिए आते हैं, राजा के घर आहार करते हैं, राजांगण में रत्नों की वर्षा, दुन्दुभि वादित्र का बजना, पुष्पवृष्टि होना आदि पंचाश्चर्य होते हैं । इत्यादि रूप का कथन करना दीक्षा कल्याण महोत्सव क्रिया का कथन है ।
केवलज्ञान कल्याण-जिनेश्वर घोर तपश्चरण के द्वारा घातियाँ कर्मों का विनाश कर केवलज्ञान प्राप्त करते हैं। उस समय वे प्रभु भूतल से पाँच हजार धनुष ऊपर चले जाते हैं इसीलिए प्रभु के समीप जाने के लिए इन्द्र की आज्ञा से कुबेर समवशरण की रचना करता है । ___ समवशरण में सर्व प्रथम रत्ननिर्मित परकोटा ( धूलिसाल), तदनन्तर चार-चार सरोवर से घेरे हुए चार मानस्तम्भ , तदनन्तर खातिका, उसके बाद सुगन्धित पुष्पों से व्याप्त पुष्पवाटिका, तत्पश्चात् प्रथम कोट, फिर दोनों ओर दो-दो नाट्यशालाएँ होती हैं उसके आगे अशोक वाटिका वन है । उसके आगे वेदिका सहित कल्पवृक्षों का वन है तत्पश्चात् जिन प्रतिमा तथा सिद्धों की प्रतिमाओं से व्याप्त नौ-नौ स्तूप हैं। एक-एक