________________
द्वितीय अधिकार
१३५ अनागत प्रत्याख्यान-चतुदर्शी आदि के दिन कर्त्तव्य, ( करने योग्य ) उपवास आदि त्रयोदशी के दिन करना अनागत प्रत्याख्यान है।
चतुर्दशी आदि में कर्त्तव्य उपवास आदि को प्रतिपदा आदि में करना अतिक्रान्त प्रत्याख्यान है।
कल स्वाध्याय का समय बीत जाने पर यदि शक्ति होगी तो उपवास आदि करूँगा, अन्यथा ( शक्ति नहीं होगी तो) नहीं करूँगा, इस प्रकार संकल्पपूर्वक किया गया प्रत्याख्यान कोटियुक्त (कोटि सहित ) प्रत्याख्यान है।
केशलोंच पाक्षिक आदि के समय अवश्य करने योग्य उपवास आदि अखण्डित प्रत्याख्यान है।
भेदपूर्वक कथित सर्वतोभद्र, कनकावली, मेरूपंक्ति आदि उपवास की विधि को करना साकार या सभेद प्रत्याख्यान है।
स्वेच्छा से कभी भी उपवास आदि करना, अनाकार या निराकार प्रत्याख्यान है।
षष्ट (वेला) अष्टम (तेला) दशम (चौला) द्वादशम, पक्ष, अर्धपक्ष, महिना आदि काल का परिमाण करके उपवास आदि करना परिमाणगत प्रत्याख्यान है।
जीवन पर्यन्त चार प्रकार के आहार आदि का त्याग करना अपरिशेष या अपरिमाण प्रत्याख्यान है। ___ मार्ग में अटवी, नदी आदि को पार करने पर किया गया उपवास आदि अध्वगत प्रत्याख्यान है।
उपसर्ग आदि के आने पर किया गया उपवास सहेतुक प्रत्याख्यान है। ये दश प्रत्याख्यान के भेद हैं। चउन्विहं तं हि विणयसुद्धं अणुवादसुद्धमिदि जाणे । अणुपालणसुद्धं चिय भावविसुद्धं गहीदव्वं ॥१००॥
चतुर्विधं तद्धि विनयशुद्धं अनुवादशुद्धमिति जानीहि ।
अनुपालनशुद्धं चैव भावविशुद्धं गृहीतव्यं ॥ पयाणि-८४०००००। इति पच्चक्खाणपुव्वं गदं-इति प्रत्याख्यानपूर्व गतं । जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा कथित इन दश भेद युक्त प्रत्याख्यान को