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अंगपण्णत्ति
है। धारणा और पारणा के दिन एकाशन करके उपवास के दिन जल लिया जाता है वा धारणा-पारणा के दिन एकाशन न करके उपवास किया जाता है वह मध्यम उपवास है। जिसमें धारणा पारणा के दिन एकाशन भी नहीं किया जाता है और उपवास के दिन जल ग्रहण कर लिया जाता है यह जघन्य उपवास है। .
जो मानव उत्तम, मध्यम और जघन्य इन तीनों उपवासों को शक्ति अनुसार शास्त्रोक्त विधि से करता है उसके शीघ्र ही कर्म बन्धन शिथिल हो जाते हैं, असंख्यातगुणो कर्मों की निर्जरा होती है। ___ अथवा अर्हन्त देव की आज्ञा और गुरु के नियोग में दत्तचित होकर श्रद्धानपूर्वक प्रत्याख्यान ग्रहण करते समय उसके मध्य में तथा प्रत्याख्यान की समाप्ति पर्यन्त सावद्य और निरवद्य दोनों प्रकार के सचेतन अचेतन और मिश्र ( सचेतन अचेतन ) परिग्रह का तथा चारों प्रकार के आहार का त्याग करना प्रत्याख्यान है अतः उपवास का ग्रहण उपवास विधि आदि भी प्रत्याख्यान है। आगे उपवास वा प्रत्याख्यान के भेदों का कथन करते हैं
अणागदमदिक्कतं कोडिजुदमखंडिदं । सायारं च गिरायारं परिमाणं तहेतरं ॥९८॥ अनागतमतिकान्तं कोटियुतमखंडितं । साकारं च निराकारं परिमाणं तथेतरत् ॥ तहा च वत्तणीयातं सहेदुगमिति ठिदं । पच्चक्खाणं जिणेदेहि दहभेयं पकित्तिदं ॥१९॥
तथा च वर्तनीयातं सहेतुकमिति स्थितं ।
प्रत्याख्यानं जिनेन्द्रैः दशभेदं प्रकीतितं ॥ जिनेन्द्र भगवान् ने अनागत, अतिक्रान्त, कोटियुत, अखण्डित, साकार, निराकार, परिमाण, अपरिमाण (अपरिशेष) अध्वगत, सहेतुक के भेद से दश प्रकार का प्रत्याख्यान कहा है ।।९८-९९।।
विशेषार्थ जिससे शरीर, इन्द्रियाँ और अशभकर्म कृश हो जाते हैं, नष्ट किये जाते हैं उसको उपवास आदि प्रत्याख्यान कहते हैं इसमें मुख्य उपवास विधि ही है उसके दश भेदों का स्वरूप इस प्रकार है