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द्वितीय अधिकार
१३३ असंयम के कारण भूत काल का मन, वचन, काय, कृत, कारित, अनुमोदना से त्याग करना, काल प्रत्याख्यान है । जैसे रात्रि में गमन आदि का त्याग करना।
संयम के विराधक मिथ्यात्व आदि भावों का मन, वचन, काय, कृत, कारित, अनुमोदना से त्याग करना भाव प्रत्याख्यान है। अथवा प्रत्याख्यान विषयक शास्त्र का ज्ञाता पुरुष उस शास्त्र में उपयुक्त है, उसके प्रत्याख्यान विषयक ज्ञान को और उसके आत्मप्रदेशों को भाव प्रत्याख्यान कहते हैं।
संयम को विराधना से उत्पन्न दोषों का निराकरण करने के लिए खाद्य, स्वाद्य, लेह्य और पेय इन चार प्रकार के आहार का प्रत्याख्यान ( त्याग ) करना उपवास है । प्रत्याख्यान का एक अंग उपवास है । अतः प्रत्याख्यान में उपवास की विधि और उसके भेद-प्रभेदों का वर्णन किया है तथा उस उपवास की भावना किस प्रकार होती है इसका वर्णन सहेतुक आदि आगे किया जायेगा। अथवा उपवास शब्द उप और वास इन दो शब्दों के मेल से बना है, जिसका अर्थ है, उप आत्मा में वास (निवास) करना । इन्द्रियों के विषय से हटकर अपनी आत्मा में लोन होना । उपवास अद्धानशन और सर्वानशन के भेद से दो प्रकार का है। काल की मर्यादापूर्वक चार प्रकार के आहार का त्याग करना अद्धानशन है और मरणपर्यन्त आहार का त्याग करना सर्वानशन है। विहार करने वाले साधु के अद्धानशन होता है और समाधिमरण करने वाले का सर्वानशन होता है । इसके भक्त प्रत्याख्यान आदि अनेक भेद हैं।
प्रत्याख्यान करने वाले को गमनागमन, भाषण, आहार, पुस्तकादि को धरना, उठाना और मलमत्र आदि क्रिया करने में सावधानी रखना समिति है । उसके ईर्या समिति, भाषा समिति, ऐषणासमिति, आदाननिक्षेपणसमिति और व्युत्सर्गसमिति के भेद से पाँच भेद हैं, जिनका वर्णन आचारांग में किया है।
सम्यकप्रकार से मन-वचन-काय का निरोध करना गुप्ति है जिनका मन, वचन और काय वश में है वही प्रत्याख्यान कर सकता है अतः गुप्ति का पालन में भी प्रत्याख्यान है। ___ समिति और गुप्ति के पालन से जिसका मन विशुद्ध हुआ है उसको उपवास का फल असंख्यात गुणो कर्मों की निर्जरा होती है।
धारणा और पारणा के दिन एकाशन करके उपवास करना उत्तम